फांसी की सजा खत्म हो : विधि आयोग
विधि आयोग ने आतंकवाद से जुड़े मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में मौत की सजा को खत्म करने की सिफारिश की है.
20वें विधि आयोग ने मौत की सजा को खत्म करने की सिफारिश की है. |
आयोग ने कहा है कि मृत्युदंड अपराधियों के मन में भय पैदा नहीं करता. ताउम्र जेल की सजा अधिक कारगर है. विधि आयोग ने यह भी कहा कि मौत की सजा समाज के रईसों के मुकाबले कमजोर वर्ग के खिलाफ इस्तेमाल की जाती है.
नौ सदस्यीय विधि आयोग की सिफारिश हालांकि सर्वसम्मत नहीं है. एक पूर्णकालिक सदस्य और दो सरकारी प्रतिनिधियों ने इससे असहमति जताई और मौत की सजा को बरकरार रखने का समर्थन किया. अपनी अंतिम रिपोर्ट में 20वें विधि आयोग ने कहा कि इस बात पर चर्चा करने की आवश्यकता है कि कैसे बेहद निकट भविष्य में यथाशीघ्र सभी क्षेत्रों में मौत की सजा को खत्म किया जाए.
विधि आयोग ने मौत की सजा को समाप्त करने के लिए किसी एक मॉडल की सिफारिश करने से इनकार किया. उसने कहा कि कई विकल्प हैं-रोक से लेकर पूरी तरह समाप्त करने वाले विधेयक तक. विधि आयोग मौत की सजा को समाप्त करने में किसी खास नजरिये के प्रति प्रतिबद्धता दिखाने की इच्छा नहीं रखता है. उसका सिर्फ इतना कहना है कि इसे खत्म करने का तरीका तेजी से और अपरिवर्तनीय और पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य हासिल करने के बुनियादी मूल्य के अनुरूप होना चाहिए.
आतंक के मामलों और देश के खिलाफ जंग छेड़ने के दोषियों के लिए मौत की सजा का समर्थन करते हुए ‘द डेथ पेनाल्टी’ शीषर्क वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंक से जुड़े मामलों को अन्य अपराधों से अलग तरीके से बर्ताव करने का कोई वैध दंडात्मक औचित्य नहीं है लेकिन आतंक से जुड़े अपराधों और देश के खिलाफ जंग छेड़ने जैसे अपराधों के लिए मौत की सजा समाप्त करने से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होगी. आयोग ने दोषियों को मौत की सजा देने में ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ सिद्धांत पर भी सवाल किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि कई लंबी और विस्तृत चर्चा के बाद विधि आयोग की राय है कि मौत की सजा ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ के सीमित माहौल के भीतर भी संवैधानिक तौर पर टिकने लायक नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि मौत की सजा को लगातार दिया जाना बेहद कठिन संवैधानिक सवाल खड़े करता है.
ये अन्याय, त्रुटि के साथ-साथ गरीबों की दुर्दशा से जुड़े सवाल हैं. तीन पूर्णकालिक सदस्यों में से एक जस्टिस (सेवानिवृत्त) उषा मेहरा और दो पदेन सदस्यों विधि सचिव पीके मल्होत्रा और विधायी सचिव संजय सिंह ने मौत की सजा समाप्त करने पर असहमति जताई है. विधि आयोग में एक अध्यक्ष, तीन पूर्णकालिक सदस्य, सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले दो पदेन सदस्य और तीन अंशकालिक सदस्य होते हैं. आयोग के अध्यक्ष जस्टिस अजित प्रकाश शाह ने कहा कि रिपोर्ट के बाद इस विषय पर बहस होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी अपने कई फैसलों में फांसी की सजा को मनमानी तरीके से लागू करने पर चिंता व्यक्त कर चुका है. 140 देश मृत्युदंड समाप्त कर चुके हैं.
हाल में याकूब मेमन को दी गई फांसी की सजा का कुछ तबकों में विरोध हुआ था. वामपंथी दलों और लेफ्ट सोच से जुड़े बुद्धिजीवी लंबे समय से कैपिटल पनिश्मेंट यानी सजा-ए-मौत को खत्म करने की मांग करते आ रहे हैं. इसी महीने देश के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा की विधानसभा ने फांसी की सजा के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया है. राज्य की विधानसभा ने मौत की सजा खत्म करने और जघन्य अपराधों के मामले में मृत्यु होने तक कैद की सजा के प्रावधान के लिए आमराय से इस बारे में प्रस्ताव पेश किया था.
Tweet |