बाप-दादा के नाम पर राजनीति का जमाना अब जल्द ही खत्म होगा: जेटली

Last Updated 30 Aug 2015 03:37:33 PM IST

कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, जल्दी ही राजनीति में परिवार के नाम, खानदान और वंशावली के लिए कोई जगह नहीं रह जाएगी.


वित्त मंत्री अरुण जेटली

उन्होंने कहा कि व्यवसाय की दुनिया में यह बदलाव पहले ही आ चुका है.
   
वर्ष 1991 को भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ बताते हुए जेटली ने कहा कि अर्थव्यवस्थाओं के उदारीकरण के बाद दुनिया पहले के मुकाबले ‘कहीं अधिक क्रूर’ हो गई है और इसमें जो अब सबसे ठीक होगा, वही टिकेगा और और जो सबसे उत्कृष्ट होगा वही पुरस्कार पाएगा. 
   
नई दिल्ली में नेशनल लॉ युनिवर्सिटी के तीसरे दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए जेटली ने कहा, ‘‘कानून और कारोबार की दुनिया में आज जो सबसे ठीक होता है, वही टिकता है. परिवार के नाम, खानदान और वंशावली का कोई मायने नहीं रह जाएगा.’’
   
उन्होंने कहा कि शीर्ष 50 कंपनियां किसी पारंपरिक व्यावसायिक घराने की नहीं हैं और उम्मीद है. आशा है, जल्द ही वह दौर आएगा जब राजनीति में भी ‘परिवार के नाम, खानदान और वंशावली’ का कोई मायने नहीं रह जाएगा.

भाजपा नेता ने किसी का नाम नहीं लिया पर उनकी इस टिप्पणी का महत्व इस बात में ही है कि कांग्रेस और कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का नेतवृत कुछ खास खास परिवारों के हाथ में है.
   
जेटली ने यह भी कहा कि ‘प्रतिभा पलायन’ का मुहावरा अब प्रासंगिक नहीं रह गया है एवं भारत के पास एक ‘ब्रेन बैंक’ है जो समाज, देश और दुनिया की सेवा कर सकता है.
   
वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि अपने प्रतिभावान श्रमबल के दम पर भारत विश्व में खासकर विकसित देशों में जहां कार्यबल की कमी है, एक बड़ी भूमिका निभा सकता है.
  
जेटली ने कहा, ‘‘वर्ष 1991 कई मायनों में भारत के लिए एक निर्णायक वर्ष रहा. 1991 से पहले सोचने की प्रक्रिया कहीं ज्यादा विनियमित थी जहां भारतीयों की ऊर्जा एवं क्षमताओं का पूर्ण दोहन नहीं हो सकता था. लेकिन, 1991 ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी ऊर्जा को मुक्त किया.
   
वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में जो बदलाव हुए हैं उनसे विद्यार्थियों को कई अवसर उपलब्ध हुए हैं.
   
आर्थिक उदारीकरण के आगाज को याद करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि 1991 एक निर्णायक वर्ष रहा क्योंकि इससे पहले भारत एक विनियमित समाज था. उदारीकरण से कानूनी शिक्षा में भी बदलाव आया और समाज व कारोबार की उभरती जरूरतें पूरी करने के लिए विधि विश्वविद्यालय और कॉलेजों की स्थापना को प्रोत्साहन मिला.



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