1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी

Last Updated 30 Jul 2015 04:13:53 AM IST

1993 मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को गुरुवार की सुबह सात बजे से कुछ देर पहले फांसी दी गई.


सुप्रीम कोर्ट के फैसले में याकूब मेमन की दया याचिका खारिज.

इससे पहले गुरुवार तड़के उच्चतम न्यायालय से राहत प्राप्त करने के उसके प्रयास विफल रहे और शीर्ष अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी. शीर्ष आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मेमन को नागपुर केंद्रीय कारागार में गुरुवार सुबह सात बजे से कुछ देर पहले फांसी दे दी गई, जहां पर फांसी के समय लगभग दस लोग मौजूद थे.

फांसी के पहले याकूब ने आखिरी नमाज पढ़ी. याकूब फांसी की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई.

याकूब ने मौत से पहले कोई भी आखिरी ख्वाहिश नहीं जाहिर की. फांसी से पहले सुबह नहाने के बाद याकूब को नए कपड़े पहनाए गए. डॉक्टरों ने उसकी मौत की पुष्टि कर दी है.

दोपहर 11 बजे याकूब के शव को उसके परिजनों को सौंपा जाएगा. परिजन उसके शव को लेकर मुंबई रवाना होंगे.

इससे पहले मुंबई बम विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन को उच्चतम न्यायालय ने मौत के वांरट पर रोक लगाने के लिए उसके वकीलों की ओर से दायर की गई याचिका खारिज कर दी थी.

तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के अध्यक्ष दीपक मिश्रा ने अदालत कक्ष संख्या 4 में एक आदेश में कहा, ‘‘मौत के वारंट पर रोक लगाना न्याय का मजाक होगा. याचिका खारिज की जाती है.’’

सुनवाई के लिए अदालत कक्ष अभूतपूर्व रूप से रात में खोला गया. तीन बजकर 20 मिनट पर शुरू हुई सुनवाई 90 मिनट तक चली जो कुछ देर पहले खत्म हुई.

न्यायालय के फैसले से फांसी रूकवाने के याकूब के वकीलों का अंतिम प्रयास विफल हो गया. उसे सुबह सात बजे नागपुर केंद्रीय कारागार में फांसी देने का फैसला हुआ..

बुधवार को तेजी से हुए घटनाक्रमों के बाद यह अंतिम फैसला आया. बुधवार को न्यायालय ने याकूब की मौत के वारंट को बरकरार रखा था और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तथा महाराष्ट्र के राज्यपाल विद्यासागर राव ने मेमन की दया याचिका को खारिज कर दिया था.

देर रात, याकूब की ओर से पेश वकीलों ने अपनी रणनीति बदली और वे प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू के घर गए तथा इस आधार पर फांसी की सजा रूकवाने के लिए उन्हें तत्काल सुनवाई के लिए याचिका दी कि मौत की सजा पाए दोषी को 14 दिन का समय दिया जाए जिससे कि वह दया याचिका खारिज किए जाने को चुनौती देने और अन्य उद्देश्यों के लिए तैयार हो सके.

विचार विमर्श के बाद प्रधान न्यायाधीश ने उन्हीं तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित कर दी जिन्होंने पूर्व में मौत के वारंट पर फैसला किया था.

वरिष्ठ अधिवक्ताओं आनंद ग्रोवर और युग चौधरी ने कहा कि अधिकारी याकूब को दया याचिका खारिज किए जाने के राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने का अधिकार दिए बिना उसे फांसी लगाने पर तुले हैं.

ग्रोवर ने कहा कि मौत की सजा का सामना कर रहा दोषी दया याचिका खारिज होने के बाद विभिन्न उद्देश्यों के लिए 14 दिन की मोहलत पाने का हकदार है.

याकूब की याचिका का विरोध करते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि उसकी ताजा याचिका प्रणाली का उल्लंघन करने के समान है.

उन्होंने कहा कि 10 घंटे पहले तीन न्यायाधीशों द्वारा मौत के वारंट को बरकरार रखे जाने के फैसले को निरस्त नहीं किया जा सकता. उन्होंने यह भी कहा कि समूचा प्रयास लंबे समय तक जेल में रहने और सजा कम कराने का प्रयास प्रतीत होता है.

फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा 11 अप्रैल 2014 को पहली दया याचिका खारिज किए जाने के बाद दोषी को काफी समय दिया गया जिसकी सूचना उसे 26 मई 2014 को दी गई थी.

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि असल में पहली दया याचिका खारिज होने के बाद उसे काफी समय दिया गया जिससे कि वह परिवार के सदस्यों से अंतिम मुलाकात करने और अन्य उद्देश्यों के लिए तैयार हो सके.

पीठ ने कहा, ‘‘यदि हम डेथ वारंट पर रोक लगाते हैं तो यह न्याय का मजाक होगा.’’ इसने यह भी कहा कि ‘‘रिट याचिका में कोई दम नहीं लगता.’’

इसने आगे कहा कि कल आदेश सुनाते हुए ‘‘टाडा अदालत द्वारा 30 जुलाई को फांसी देने के लिए 30 अप्रैल को जारी किए गए डेथ वारंट में हमें कोई खामी नहीं दिखी.’’

आदेश पर प्रतिक्रि या व्यक्त करते हुए ग्रोवर ने कहा कि यह एक दुखद गलती और गलत फैसला है.

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का समापन हो गया है और जीत का कोई सवाल नहीं है.



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