अपनी ‘ड्रीम बुक’’ को अधूरा ही छोड़कर चले गए कलाम

Last Updated 28 Jul 2015 06:39:11 AM IST

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम अपनी एक ‘‘महत्वाकांक्षी किताब’’ को अधूरा ही छोड़कर चले गए.


पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम (फाइल फोटो)

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम तमिलनाडु के विकास के संबंध में अपनी एक ‘‘महत्वाकांक्षी किताब’’ पर काम कर रहे थे और तमिल भाषा में लिखी जा रही इस किताब के उन्होंने सात अध्याय पूरे कर लिए थे और यह किताब तकरीबन पूरी ही होने वाली थी कि कलाम बीच में ही चले गए.

कलाम की ‘विजन 2020 ’ में भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की कल्पना की गयी थी और इसी प्रकार कलाम तमिलनाडु के लिए भी ऐसी ही एक किताब पर काम कर रहे थे.

किताब के सह लेखक तथा कलाम के वैज्ञानिक सलाहकार वी पोनराज ने बताया कि ‘‘एन्नाथिल नालामिरूंथाल कनावू तमिलगम उरूवागम, पुयालाई थांडीनाल थेंडराल’’ शीषर्क वाली किताब के सात अध्यायों को काफी विस्तृत विचार विमर्श के बाद अंतिम रूप दे दिया गया था.

उन्होंने बताया कि 23 जुलाई को इस किताब पर उनकी कलाम से अंतिम बात हुई थी.

पोनराज ने तमिल टीवी चैनल को बताया, ‘‘वह एक विकसित तमिलनाडु का सपना देखते थे और चाहते थे कि यह राज्य फले फूले. किताब में उनकी इसी दृष्टि को पेश किया गया है.’’

कलाम अंतिम समय तक सक्रिय थे और अपने ट्विटर एकाउंट पर उन्होंने शिलांग व्याख्यान के बारे में लिखा था जो उनका अंतिम भाषण रहा.

जब कलाम ने राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने से इंकार कर दिया था. एक बार एक समारोह के दौरान पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उनके लिए निर्धारित एक कुर्सी पर केवल इसलिए बैठने से इंकार कर दिया था कि उनके लिए निर्धारित की गयी कुर्सी अन्य कुर्सियों से आकार में बड़ी थी.

ऐसी ही कई अन्य घटनाएं डॉ कलाम के जीवन से जुड़ी हुई थीं जो उनकी सादगी और मानवीयता को दर्शाती थीं जिसके कारण वह सार्वजनिक जीवन में जनता के बीच बेहद लोकप्रिय थे.
आईआईटी बीएचयू : बनारस में एक दीक्षांत समारोह में कलाम मुख्य अतिथि थे और मंच पर पांच कुर्सियां रखी थीं जिनमें से बीच वाली कुर्सी राष्ट्रपति के लिए निर्धारित थी. बाकी चार कुर्सियां विवि के शीर्ष अधिकारियों के लिए थीं.

यह देखकर की उनकी कुर्सी बाकी चार कुर्सियों से आकार में बड़ी है, कलाम ने उस पर बैठने से इंकार कर दिया और उस कुर्सी पर कुलपति को बैठने के लिए कहा. जाहिर सी बात है कि कुलपति उस कुर्सी पर नहीं बैठे और उसके बाद तुरंत ‘‘जनता के राष्ट्रपति’’ के लिए एक अन्य कुर्सी का प्रबंध किया गया.

एक बार कलाम ने एक इमारत की दीवार की रक्षा के लिए उस पर टूटा कांच लगाने के सुझाव को यह कहते हुए नकार दिया था कि ऐसा करना पक्षियों के लिए नुकसानदेह साबित होगा.
एक अन्य दस्तावेज में बताया गया है कि जब डीआरडीओ में कलाम के एक अधीनस्थ सहयोगी काम के दबाव के कारण अपने बच्चों को प्रदर्शनी में नहीं ले जा सके थे तो कलाम खुद उनके बच्चों को लेकर गए.

इतना ही नहीं, यह बात शायद सभी को मालूम नहीं हो कि राष्ट्रपति बनने के बाद केरल की अपनी पहली यात्रा के दौरान राजभवन में सड़क किनारे बैठने वाले एक मोची और एक छोटे से होटल के मालिक को मेहमान के तौर पर उन्होंने आमंत्रित किया था.

कलाम ने एक वैज्ञानिक के तौर पर अपना काफी समय त्रिवेंद्रम में बिताया था और केरल में उन दिनों वह उस मोची के काफी करीब थे और इसी प्रकार होटल मालिक से भी उनकी दोस्ती थी जहां वह अक्सर खाना खाने जाते थे.



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