मेहनत के बल पर पहुंचे फर्श से अर्श तक कलाम

Last Updated 28 Jul 2015 04:22:59 AM IST

कलाम का बचपन बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा. वे प्रतिदिन सुबह चार बजे उठकर गणित का ट्यूशन पढ़ने जाते थे.


पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम (फाइल फोटो)

वहां से पांच बजे लौटने के बाद वे अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते, फिर घर से तीन किलोमीटर दूर स्थित धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से अखबार लाते और पैदल घूम-घूम कर बेचते. आठ बजे तक वे अखबार बेच कर घर लौट आते. उसके बाद तैयार होकर वे स्कूल चले जाते. स्कूल से लौटने के बाद शाम को वे अखबार के पैसों की वसूली के लिए निकल जाते थे.

कलाम की लगन और मेहनत के कारण उनकी मां खाने-पीने के मामले में उनका विशेष ध्यान रखती थीं. दक्षिण में चावल की पैदावार अधिक होने के कारण वहां रोटियां कम खाई जाती हैं लेकिन इसके बावजूद कलाम को रोटियों से विशेष लगाव था. उनकी मां उन्हें प्रतिदिन खाने में दो रोटियां अवश्य दिया करती थीं. एक बार उनके घर में खाने में गिनी-चुनीं रोटियां ही थीं. यह देखकर मां ने अपने हिस्से की रोटी कलाम को दे दी. उनके बड़े भाई ने कलाम को धीरे से यह बात बता दी. इससे कलाम अभिभूत हो उठे और दौड़ कर मां से लिपट गए. प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने ार्ट्ज हाईस्कूल, रामनाथपुरम में प्रवेश लिया. वहां की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, त्रिची में प्रवेश लिया. वहां से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बीएससी की डिग्री प्राप्त की. अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चेन्नई का रुख किया. वहां पर उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया.

स्वर्णिम सफर

\"28कलाम की इच्छा थी कि वे वायु सेना में भर्ती हों तथा देश की सेवा करें. यह इच्छा पूरी न हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद का चुनाव किया. वहां पर उन्होंने 1958 में तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला. उन्हीं दिनों इसरो में स्वदेशी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से ‘उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम’ की शुरुआत हुई. कलाम को इस योजना का प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया. कलाम ने इस योजना को भलीभांति अंजाम तक पहुंचाया तथा जुलाई 1980 में ‘रोहिणी’ उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करके भारत को ‘अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब’ के सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया. डॉ. कलाम ने भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्यद से रक्षामंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस अरुणाचलम के मार्गदशर्न में ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ की शुरुआत की. इस योजना के अंतर्गत ‘त्रिशूल’ (नीची उड़ान भरने वाले हेलीकॉप्टरों, विमानों तथा विमानभेदी मिसाइलों को निशाना बनाने में सक्षम), ‘पृथ्वी’ (जमीन से जमीन पर मार करने वाली, 150 किमी. तक अचूक निशाना लगाने वाली हल्कीं मिसाइल), ‘आकाश’, ‘नाग’, ‘अग्नि’ एवं ‘ब्रह्मोस’ मिसाइलें विकसित हुई.

डॉ. कलाम ने जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा डीआरडीओ के सचिव के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कीं. उन्होंने भारत को ‘सुपर पॉवर’ बनाने के लिए 11 मई और 13 मई 1998 को सफल परमाणु परीक्षण किया. इस प्रकार भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की. डॉ. कलाम नवम्बर 1999 में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे. डॉ. कलाम 25 जुलाई 2002 को भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए. वे 25 जुलाई 2007 तक इस पद पर रहे.

पुस्तकें

डॉ. अब्दुल कलाम भारतीय इतिहास के ऐसे पुरुष हैं, जिनसे लाखों लोग प्रेरणा ग्रहण करते हैं. अरुण तिवारी लिखित उनकी जीवनी ‘विंग्स ऑ फायर’ भारतीय युवाओं और बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय है. उनकी लिखी पुस्तकों में ‘गाइडिंग सोल्स : डायलॉग्स ऑन द पर्पज ऑफ लाइफ’  एक गंभीर कृति है, जिसके सह लेखक अरुण के. तिवारी हैं. इनके अतिरिक्त उनकी अन्य चर्चित पुस्तकें हैं- ‘इग्नाइटेड माइंड्स : अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’ ‘एनिवजनिंग अन एमपार्वड नेशन : टेक्नोलॉजी फॉर सोसायटल ट्रांसफारमेशन’, ‘डेवलपमेंट्स इन फ्ल्यूड मैकेनिक्सि एण्ड स्पेस टेक्नालॉजी’, ‘2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम’ सह लेखक- वाईएस राजन, ‘इनिवजनिंग ऐन इम्पॉएर्वड नेशन : टेक्नोलॉजी फॉर सोसाइटल ट्रांसफॉरमेशन’ सह लेखक- ए सिवाथनु पिल्ललई. डॉ. कलाम ने तमिल भाषा में कविताएं भी लिखी हैं, जो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. उनकी कविताओं का एक संग्रह ‘द लाइफ ट्री’ के नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुआ है.

पुरस्कार/सम्मान

डॉ. कलाम की योग्यता के दृष्टिगत सम्मान स्वरूप उन्हें अन्ना यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, कल्याणी विविद्यालय, हैदराबाद विविद्यालय, जादवपुर विविद्यालय, बनारस हिन्दू विविद्यालय, मैसूर विविद्यालय, रूड़की विविद्यालय, इलाहाबाद विविद्यालय, दिल्ली विविद्यालय, मद्रास विविद्यालय, आंध्र विविद्यालय, भारतीदासन छत्रपति शाहूजी महाराज विविद्यालय, तेजपुर विविद्यालय, कामराज मदुरै विविद्यालय, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विविद्यालय, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मुंबई, आईआईटी कानपुर, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी, इंडियन स्कूल ऑफ साइंस, सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा, मनीपाल एकेडमी ऑफ हॉयर एजुकेशन, विेरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी ने अलग-अलग ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की मानद उपाधियां प्रदान की. जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी हैदराबाद ने उन्हें ‘पीएचडी’  तथा विभारती शान्ति निकेतन और डॉ. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विविद्यालय औरंगाबाद ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की मानद उपाधियां प्रदान कीं. इनके साथ वे इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज बेंग्लुरू, नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस नई दिल्ली के सम्मानित सदस्य, एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रानिक्स एंड टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियर्स के मानद सदस्य, इजीनियरिंग स्टॉफ कॉलेज ऑफ इंडिया के प्रोफेसर तथा इसरो के विशेष प्रोफेसर रहे.

पुरस्कार/ सम्मान

नेशनल डिजाइन अवार्ड-1980 (इंस्टीटयूशन ऑफ इंजीनियर्स भारत), डॉ. बिरेन रॉय स्पेस अवार्ड-1986 (एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया), ओम प्रकाश भसीन पुरस्कार, राष्ट्रीय नेहरू पुरस्कार-1990 (मध्य प्रदेश सरकार), आर्यभट्ट पुरस्कार-1994, प्रो. वाई नयूडम्मा मेमोरियल गोल्ड मेडल-1996, जीएम मोदी पुरस्कार-1996, एचके फिरोदिया पुरस्कार-1996, वीर सावरकर पुरस्कार-1998 आदि. उन्हें राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार (1997) भी प्रदान किया गया. भारत सरकार ने उन्हें क्रमश: पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) एवं ‘भारत रत्न’ सम्मान (1997) से भी विभूषित किया गया.



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