मोदी सरकार ने सिर्फ जारी किये सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़े, जातिगत आंकड़े सार्वजनिक नहीं

Last Updated 03 Jul 2015 02:11:18 PM IST

मोदी सरकार ने सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना जारी की. देश के सिर्फ 4.6 प्रतिशत ग्रामीण परिवार आयकर देते हैं जबकि वेतनभोगी ग्रामीण परिवारों की संख्या 10 प्रतिशत है.


मोदी सरकार ने सिर्फ जारी किये सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़े (फाइल फोटो)

यह बात आज पिछले आठ दशक में पहली बार जारी सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना में कही गई. सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना 2011 में कहा गया कि आयकर देने वाले अनुसूचित जाति के परिवारों की संख्या 3.49 प्रतिशत है जबकि अनुसूचित जनजाति के ऐसे परिवारों की संख्या मात्र 3.34 प्रतिशत है.

इससे पहले माना जा रहा था कि सरकार जातिगत आधारित सामाजिक-आर्थिक जनगणना के आंकड़े पेश किए जाएंगे, लेकिन सरकार ने जातिगत आधारित आंकड़े पेश नहीं किया.

यह जनगणना जारी करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इस आंकडे से सरकार को बेहतर नीति नियोजन में मदद मिलेगी.

उन्होंने कहा, ‘योजनाओं की विशालता और हर सरकार की पहुंच को देखते हुए इस दस्तावेज से हमें नीति नियोजन के लिहाज से लक्षित समूह को सहायता पहुंचाने में मदद मिलेगी.’ उन्होंने कहा कि इस दस्तावेज से भारत की वास्तविकता जाहिर होगी और यह सभी नीतिनिर्माताओं, केंद्र और राज्य सरकार दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगा.

गौरतलब है कि 1932 के बाद यह पहली जनगणना है जिसमें क्षेत्र विशेष, समुदाय, जाति एवं आर्थिक समूह संबंधी विभिन्न किस्म के ब्योरे हैं और भारत में परिवारों की प्रगति का आकलन किया गया है.

गौरतलब है कि 1932 के बाद यह पहली जनगणना है जिसमें क्षेत्र विशेष, समुदाय, जाति एवं आर्थिक समूह संबंधी विभिन्न किस्म के ब्योरे हैं और भारत में परिवारों की प्रगति का आकलन किया गया है.
जेटली ने कहा, ‘1932 की जाति जनगणना के बाद करीब 7-8 दशक के बाद हमारे पास ऐसा दस्तावेज आया है. यह ऐसा दस्तावेज है जिसमें कई तरह के ब्योरे हैं. कौन लोग हैं जो जीवन शैली के लिहाज से आगे बढ़े हैं, कौन से ऐसे समूह हैं जिन पर भौगोलिक क्षेत्र, सामाजिक समूह दोनों के लिहाज से भावी योजना में ध्यान देना है.’

यह जनगणना सर्वेक्षण देश के सभी 640 जिलों में किया गया था. इसमें 17.91 करोड़ ग्रामीण परिवारों का सर्वेक्षण किया गया है. देश में ग्रामीण और शहरी दोनों तरह के परिवार मिलाकर कुल 24.39 करोड़ परिवार हैं.

सभी ग्रामीण परिवारों में से उन 7.05 करोड़ या 39.39 प्रतिशत परिवारों को ‘बाहर रखे गए परिवार’ बताया गया है जिनकी आय 10,000 रुपए प्रति माह से अधिक नहीं है या जिनके पास कोई मोटर गाड़ी, मत्स्य नौका या किसान केडिट कार्ड नहीं हैं.

कुल ग्रामीण परिवारों में से 5.39 करोड़ (30.10 प्रतिशत) परिवार जीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं, 9.16 करोड़ (51.14 प्रतिशत) परिवार दिहाड़ी के आधार पर हाथ से किए जाने वाले श्रम से आय कमाते हैं. करीब 44.84 लाख परिवार दूसरों के घरों में घरेलू सहायक के तौर पर काम करके आजीविका कमाते है, 4.08 लाख परिवार कचरा बीनकर और 6.68 लाख परिवार भीख मांगकर अपना घर चला रहे हैं.

ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘यह आंकड़ा गरीबी के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है और इकाई के रूप में ग्राम पंचायत के साथ मिलकर एक केंद्रित, साक्ष्य आधारित योजना बनाने का अद्वितीय अवसर मुहैया कराता है.’

ग्रामीण वेतनभोगी परिवारों में से पांच प्रतिशत परिवार सरकार से वेतन प्राप्त करते हैं जबकि कुल परिवारों के 3.57 प्रतिशत परिवार निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं. सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत परिवार कुल परिवारों का 1.11 प्रतिशत हैं.

जनगणना में कहा गया है कि 94 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास मकान हैं जिनमें से 54 प्रतिशत परिवारों के पास 1-2 कमरों के घर हैं. कुल ग्रामीण जनसंख्या के 56 प्रतिशत हिस्से के पास भूमि नहीं है जिनमें 70 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 50 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लोग भूमिहीन स्वामित्व वाले हैं.

जनगणना में 39 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को ‘स्वत: बाहर रखे गए’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है.इसके अलावा 11 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास फ्रि ज है और 20.69 प्रतिशत के पास एक मोटर गाड़ी या एक मत्स्य नौका है.



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