वसीयतकर्ता के सामने गवाह के हस्ताक्षर होने पर ही विल वैध
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैध वसीयत के लिए जरूरी है कि वसीयतकर्ता की मौजूदगी में ही गवाह ने ‘विल’ यानी वसीयत पर हस्ताक्षर किए हों.
उच्चतम न्यायालय, भारत सरकार, दिल्ली |
अगर गवाह यह बताने में असमर्थ है कि वसीयत करने वाले ने उसके सामने विल पर दस्तखत नहीं किए तो इस तरह की वसीयत को वैध करार नहीं दिया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चों और नाती-पोतों के साथ मधुर संबंध रखने वाला व्यक्ति परिवार के अलावा किसी बाहरी शख्स को अपनी संपत्ति का मालिकाना हक प्रदान कर देगा, यह अस्वाभाविक है.
जस्टिस कुरियन जोसेफ जस्टिस अमिताव रॉय ने दिल्ली की प्रॉपर्टी को लेकर एक परिवार के सदस्यों और मृतक के कर्मचारी के बीच लंबे समय से चले आ रही कानूनी लड़ाई पर विराम लगा दिया. दक्षिण दिल्ली की करोड़ों रुपए की अचल संपत्ति पर जगदीश चंद्र शर्मा ने अपना दावा पेश किया था. जगदीश ने नाथू सिंह की वसीयत के आधार पर कोटला मुबारकपुर के सुखदेव नगर स्थित कई संपत्तियों का वारिस अपने आप को बताया था. जगदीश का दावा था कि नाथू सिंह ने 22 अक्टूबर, 1973 को एक वसीयत की थी जिसमें उसे संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाया गया था. नाथू सिंह की 1980 में मौत होने के बाद जगदीश ने अदालत में उन सभी संपत्तियों को अपने नाम करने के लिए दावा दायर किया. जगदीश नाथू सिंह का प्रॉपर्टी का किराया वसूल करता था, लेकिन बाद में इन दोनों के बीच विवाद भी हो गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 63 का हवाला देते हुए कहा कि वसीयत की वैधता तभी हो सकती है, जब वसीयतकर्ता ने गवाहों को सामने विल पर हस्ताक्षर किए हों. अदालत में गवाही के दौरान एक विटनेस यह नहीं बता पाया कि नाथू सिंह ने उसके सामने वसीयत पर हस्ताक्षर किए थे. यह गवाह एक वकील है.
वकील के पिता दस्तावेज लेखक थे जिसके सामने नाथू सिंह द्वारा वसीयत पर दस्तखत करने का दावा पेश किया गया था, लेकिन गवाही में यह इस बात की तस्दीक नहीं हो सकी कि नाथू सिंह ने स्वयं वसीयत का आग्रह किया था या लेखक ने खुद पहल करते हुए विल पर दस्तखत कराए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मृतक नाथू सिंह के छह बच्चे थे. उनके नाती-पोते थे. नाथू सिंह ने जिस तारीख को अपने बच्चों के नाम गिफ्ट डीड पर दस्तखत किए, उसी तारीख में जगदीश के नाम भी प्रॉपर्टी की वसीयत का दावा किया गया है. यह हो सकता है कि गिफ्ट डीड के साथ-साथ वसीयत पर भी हस्ताक्षर करा लिए गए हों.
नाथू सिंह सिर्फ उर्दू जानते थे, जबकि वसीयत अंग्रेजी में थी. तीस हजारी स्थित ट्रायल कोर्ट ने जगदीश के पक्ष में फैसला दिया था लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने जिला अदालत के निर्णय को पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया.
| Tweet |