आरएसएस ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की मांग दोहरायी
मदर टेरेसा पर मोहन भागवत की टिप्पणी से उत्पन्न विवाद के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने देश में धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए धर्मांतरण-विरोधी कानून की अपनी मांग दोहरायी.
आरएसएस (फाइल) |
आरएसएस के अखिल भारतीय सहसेवा प्रमुख सुहासराव हिरेमाथ ने एक आगामी विशाल कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए नई दिल्ली में बुलाये गये संवाददाता सम्मेलन में संघ की यह मांग दोहरायी. इस विशाल कार्यक्रम में आरएसएस से जुड़े करीब 800 सामाजिक सेवा संगठन हिस्सा लेंगे.
हिरेमाथ ने कहा, ‘‘झूठे वादों, जबर्दस्ती या किसी गलत तरीके से होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून की मांग पुरानी मांग है. हमारा उन लोगों से कोई बैर नहीं है जो स्वेच्छा से अपना धर्म बदलते हैं. लेकिन गलत तरीके से होने वाले ऐसे धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं को ध्यान में रखकर सरकार को कानून बनाना चाहिए.’’
भागवत की इस टिप्पणी से कि मदर टेरेसा द्वारा गरीबों की सेवा के पीछे ईसाई बनाना ही मुख्य उद्देश्य था, से बहुत बड़ा विवाद पैदा हो गया और विपक्ष ने सरकार पर करारा प्रहार किया.
हिरेमाथ ने कहा, ‘‘कुछ राज्यों ने पहले ही ऐसे कानून बनाए हैं. वर्तमान सरकार ने भी संसद में यह मुद्दा उठाया है...उसे भी इस संबंध में नियोगी समिति की रिपोर्ट की सिफारिशें लागू करने पर विचार करना चाहिए.’’
पहले विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के ‘घरवापसी’ कार्यक्रम पर विवाद के बीच सरकार ने कहा था कि वह बलात धर्मांतरण के विरूद्ध विधेयक लाने पर विचार कर सकती है.
तीन दिवसीय विशाल कार्यक्रम ‘राष्ट्रीय सेवा संगम’ का उद्घाटन चार अप्रैल को माता अमृतानंदमयी करेंगी और उसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत एवं विप्रो अध्यक्ष अजीम प्रेमजी एवं अन्य लोग हिस्सा लेंगे.
पहला राष्ट्रीय सेवा संगम वर्ष 2010 में बेंगलूर में हुआ था.
आरएसएस के आनुषंगिक संगठन राष्ट्रीय सेवा भारती के तत्वाधान में आयोजित इस कार्यक्रम में करीब 3000 प्रतिनिधियों के हिस्सा लेने की संभावना हैं. यह आयोजन बाहरी दिल्ली में राष्ट्रीय राजमार्ग एक के आसपास होगा.
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