हेराल्ड प्रकरण: तेजी से सुनवाई के लिये स्वामी उच्च न्यायालय जायेंगे
उच्चतम न्यायालय ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी से कहा कि नेशनल हेराल्ड मामले की तेजी से सुनवाई के लिये वह दिल्ली उच्च न्यायालय से अनुरोध करें.
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी (फाइल फोटो) |
इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को तीन अन्य के साथ बतौर आरोपी अदालत ने समन किया है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह उच्च न्यायालय में लंबित मामले की सीधे सुनवाई नहीं कर सकता है. उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के इन सभी को समन करने के आदेश पर रोक लगा रखी है.
न्यायमूर्ति वी गोपाल गौडा और न्यायमूर्ति आर बानुमती ने कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत यह याचिका विचारयोग्य नहीं है. न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘आप उच्च न्यायालय में यही दलील दे सकते हैं और इस मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश के समक्ष एक अर्जी दायर कर या फिर उच्च न्यायालय में नयी याचिका दायर कर इस ओर ध्यान आकषिर्त कर सकते हैं.’’
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘आपको दिल्ली उच्च न्यायालय जाने का पूरा अधिकार है. हम इस तरह की याचिका पर विचार नहीं करेंगे.’’ न्यायालय ने कहा कि स्वामी शीर्ष अदालत में अपील दायर कर सकते हैं यदि उनकी शिकायत पर विचार नहीं होता है.
शीर्ष अदालत ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद स्वामी को याचिका वापस लेने और उच्च न्यायालय में लंबित मामले में ही संपर्क करने या फिर अलग से याचिका दायर करने की अनुमति प्रदान कर दी.
स्वामी ने कहा कि उच्च न्यायालय के घटनाक्र म के कारण वह शीर्ष अदालत में आने के लिये बाध्य हुये हैं. उच्च न्यायालय में यह मामला अब 18 मार्च के लिये सूचीबद्ध किया गया है.
उन्होंने विस्तार से इस प्रकरण की पृष्ठभूमि बताते हुये कहा कि 12 जनवरी को उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति वी वी वैश अपने मामलों के रोस्टर में बदलाव के आधार पर इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया और याचिका उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया जिन्होंने इसे न्यायमूर्ति सुनील गौड के पास भेज दिया है.
स्वामी ने न्यायाधीश के मामले से अलग होने का विरोध करते हुये इसकी सुनवाई उसी न्यायाधीश से कराने का अनुरोध किया था जिन्होंने अभी तक इसकी सुनवाई की थी क्योंकि नये सिरे से सुनवाई होने पर इस मामले में विलंब ही होगा.
उच्च न्यायालय ने उनका अनुरोध ठुकराते हुये मामले को स्थानांतरित कर दिया था.
स्वामी का कहना था कि आंशिक सुनवाई वाला मामला होने के बावजूद नये न्यायाधीश ने लंबी तारीख दी जिससे एक तरह से नये सिरे से बहस शुरू होगी.
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