स्वदेशी टाट्रा ट्रक बनाने में सेना बनी बाधा: कैग

Last Updated 21 Dec 2014 12:57:02 PM IST

कैग ने टाट्रा वाहनों के उत्पादन में अभी भी भारत की विदेशों पर निर्भरता के लिए थल सेना की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा है कि उसकी ढिलाई के कारण तीन दशक बाद भी इनके लिए देश को दूसरों का मुंह ताकना पड़ रहा है.


टाट्रा ट्रक (file photo)

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन वाहनों की स्वेदशीकरण की प्रक्रिया वर्ष 1986 में शुरू हुई थी और इसके तहत पांच वर्षो में इस क्षेत्र में 86 फीसदी स्वदेशीकरण हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन 28 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह लक्ष्य अधूरा ही है.

टाट्रा ट्रक सौदा 2012 में भी विवादों में छाया रहा था जब तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह ने आरोप लगाया था कि उन्हें घटिया टाट्रा ट्रकों की आपूर्ति के लिए 14 करोड रूपये की पेशकश की गई थी.

रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है थलसेना द्वारा बीईएमएल को दीर्घ अवधि के लिए दिये गये आदेशों में स्पष्ट कमी के कारण टाट्रा वाहनों के स्वदेशीकरण की प्रक्रिया का नुकसान हुआ. करार की शर्तों में बार बार बदलाव के कारण भी  स्वदेशीकरण की प्रक्रिया बाधित हुई और इसे बनाने वाली मूल  विदेशी कंपनी पर निर्भरता बढी.

कैग की रिपोर्ट के अनुसार थल सेना को 1991 तक अपने एक उपक्रम भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड, बीईएमएल, को 1030 टाट्रा ट्रकों के उत्पादन का आर्डर देना था.  थल सेना ने लेकिन 1991 तक केवल 500 वाहनों का आर्डर दिया. बीईएमएल ने 1988 में रक्षा मंत्रालय को सूचित किया कि थल सेना से वाहनों के लिए कम संख्या में आर्डर मिल रहे हैं. उसने यह भी कहा कि मितव्ययिता के नाम पर स्वदेशीकरण की प्रक्रिया महंगी साबित होगी.

कैग ने कहा है कि इसके बावजूद सेना और मंत्रालय ने इन वाहनों के आर्डर की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए कोई वादा नहीं किया.  आरंभिक करार के अनुसार बीईएमएल को टाट्रा वाहनों के स्वदेशीकरण के साथ साथ उसके कलपूर्जों का भी स्वदेशीकरण करना था. लेकिन हकीकत यह है कि वर्ष 2007 तक कलपूर्जों का उत्पादन शुरू नहीं हुआ और 2013 तक पूर्जों के स्वदेशीकरण का 40.66 फीसदी काम ही पूरा हो सका.

रिपोर्ट में कलपूर्जों की कमी का मुद्दा उठाते हुए कहा गया है कि इससे टाट्रा ट्रकों की रख रखाव और मरम्मत का काम भी प्रभावित हुआ है.
 



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