घाटी में चुनावी पारा उफान पर
दो अंद्राबी, दो विचारधाराएं. घाटी का मौसमी तापमान भले बेहद ठंडा है, लेकिन चुनावी पारा उफान पर है.
घाटी में चुनावी पारा उफान पर |
दरअसल, यह दोनों अंद्राबी महिलाएं हैं, एक हैं सईदा आसिया अंद्राबी और दूसरी हैं द्रक्षा अंद्राबी. सईदा आसिया अंद्राबी दुखतरान-ए-मिल्लत की नेता हैं, जो जमायत-ए-इस्लामी से जुड़ी हैं और उनका संबंध आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के प्रमुख सैयद सलाहुदीन से है.
वह चरमपंथी अलगावादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की बेहद करीबी मानी जाती हैं. दूसरी, द्रक्षा अंद्राबी एक कवयित्री एवं मुख्यधारा से जुड़ी समाजसेविका और अब भाजपा के टिकट पर मध्य कश्मीर से चुनाव मैदान में हैं.
सईद आसिया अंद्राबी पर आरोप है कि वह घाटी में वहां की महिलाओं के रहन-सहन से लेकर पहनावे तक के लिए हुकुम जारी करती रही हैं. कुल मिलाकर आसिया का घाटी में खौफ का सिक्का है. वास्तव में यह दोनों अंद्राबी एक सिक्के के दो पहलू हैं.
एक आजादी समर्थक और दूसरी मुख्यधारा से जुड़े रहने की वकालत करने वाली है. आसिया ने अपना जो संगठन दुखतरान-ए-मिल्लत बनाया है. उसका मतलब राष्ट्र की बेटी है.
उसके राष्ट्र का मतलब सिर्फ कश्मीर है, जबकि द्रक्षा खुद को भारत की बेटी कहती हैं. इन दोनों विपरीत विचारधाराओं का घाटी में हो रहे चुनाव में क्या असर होगा, यह तो समय ही बताएगा.
आसिया इन चुनाव के बहिष्कार के लिए खड़ी हैं, जबकि द्रक्षा सूबे के विकास के लिए चुनाव में खड़ी हैं. द्रक्षा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत उम्मीदें हैं. वह कहती हैं कि मोदी के नेतृत्व में ही जम्मू-कश्मीर खुशहाल हो सकता है. द्रक्षा ने हाल ही में भाजपा ज्वाइन की है. अभी तक वह सिख नौजवानों के साथ मिलकर एक संस्था चलाती रही हैं.
उधर, आसिया का पति मोहम्मद कासिम फकटू आतंकवादी गतिविधियों के कारण जेल में है. आसिया चुनाव के बायकाट के लिए भूमिगत होकर कश्मीरी आवाम को चुनाव से दूर रहने के लिए कह रही हैं.
द्रक्षा अंद्राबी भाजपा की टिकट पर मध्य कश्मीर के सोनावर विधानसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं. द्रक्षा जेके अकेडमी ऑफ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेज की उर्दू पत्रिका शीराजा में काम करती थी और उन्हें राज्य के रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड तथा वंदेमातरम सम्मान से नवाजा जा चुका है.
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