स्मृति ईरानी ने खारिज की संस्कृत को अनिवार्य बनाने की मांग
शिक्षा का भगवाकरण किए जाने के आरोपों को खारिज करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने संस्कृत भाषा को पाठ्यक्रम में अनिवार्य बनाए जाने की मांग को सिरे से नकार दिया.
मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी (फाइल फोटो) |
ईरानी ने शिक्षा के भगवाकरण के आरोपों को खारिज किया और कहा, ‘‘जो लोग मुझ पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतीक या प्रतिनिधि होने का आरोप लगाते हैं वे असल में हमारी ओर से किए गए अच्छे कामों से ध्यान हटाना चाहते हैं. ये एजेंडा जारी रहेगा और जब तक हमारे अच्छे कार्यों से ध्यान हटाने की जरूरत बनी रहेगी तब तक मेरी ऐसे ही आलोचना होती रहेगी. मैं इसके लिए तैयार हूं. मुझे कोई समस्या नहीं है’’.
केंद्र द्वारा संचालित लगभग 500 केंद्रीय विद्यालयों में जर्मन के स्थान पर संस्कृत को तीसरी भाषा के रूप में लाए जाने के विवादास्पद फैसले के संबंध में पूछे गए सवालों के जवाब में ईरानी ने कहा कि वर्ष 2011 में हस्ताक्षरित एक सहमति पत्र के तहत जर्मन भाषा को पढ़ाया जाना संविधान का उल्लंघन है.
इसकी जांच करने के आदेश पहले ही दे दिए गए हैं कि इस सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कैसे हुए.
संस्कृत को अनिवार्य भाषा बनाए जाने की मांगों के जवाब में ईरानी ने कहा कि तीन भाषा का फॉर्मूला पूरी तरह स्पष्ट है कि संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत आने वाली किसी भी भाषा का विकल्प चुना जा सकता है.
लेकिन उन्होंने इस बात को दोहराया कि जर्मन को विदेशी भाषा के तौर पर पढ़ाया जाना जारी रहेगा.
स्मृति ईरानी ने कहा, ‘‘हम फ्रैंच पढ़ा रहे हैं, हम मंदारिन पढ़ा रहे हैं, उसी तरीके से हम जर्मन पढ़ाते हैं. मुझे यह समझ नहीं आता कि लोगों को वह बात क्यों नहीं समझ आ रही है जो मैं कह रही हूं’’.
ईरानी ने इससे पूर्व जर्मन के स्थान पर संस्कृत को लाए जाने के फैसले को मजबूती से सही ठहराते हुए कहा था कि मौजूदा व्यवस्था संविधान का उल्लंघन करती है.
इन आरोपों को खारिज करते हुए कि शिक्षा का भगवाकरण किया जा रहा है, मंत्री ने कहा कि विभिन्न संस्थानों के प्रमुखों का चयन करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि उनकी धार्मिक आस्था क्या है.
स्मृति ईरानी ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में चार वर्षीय अंडरग्रेज्युएट कार्यक्रम को वापस लेते हुए उनके दिमाग में कभी यह बात नहीं थी कि छात्र किस क्षेत्र या धर्म से ताल्लुक रखते हैं.
इस संदर्भ में उन्होंने कार्यक्रम को वापस लिए जाने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि दी गई डिग्रियों की कोई \'कानूनी मान्यता\' नहीं थी.
देश में शिक्षा का राजनीतिकरण किए जाने की धारणा को खारिज करते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा, ‘‘मेरी कोशिश यह है कि जो भी मैं करूं वह कानून के भीतर हो और छात्रों के हित में हो’’.
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति संबंधी चर्चाओं पर उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ा काम है और इसमें शिक्षाविदें और विशेषज्ञों के साथ ही वे सभी पक्ष शामिल होंगे जो इससे सीधे प्रभावित होते हैं. इस पर चर्चा अगले साल शुरू होगी.
ईरानी ने कहा, ‘‘पहली बार, हमारे देश के इतिहास में, एक ऐसी पहल की जाएगी जिसमें इस नीति पर विचार की प्रक्रिया में नागरिकों को भी शामिल किया जाएगा क्योंकि जब हम एक शिक्षा नीति पर पहुंच जाएंगे तो यह पीढ़ियों को प्रभावित करेगी’’.
ईरानी ने कहा, ‘‘इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कि जो सर्वाधिक प्रभावित होंगे, उनके विचारों को भी शामिल किया जाए. इन्हीं सब चीजों पर मैं इस समय मंत्रालय के भीतर काम कर रही हूं’’.
ऐसी कार्यपद्धति तैयार की जा रही है जहां निजी क्षेत्र, शिक्षाविद, संस्थानों के विशेषज्ञ और नीति विशेषज्ञों के अलावा अन्य पक्षों को नीति का मसौदा तैयार करने में शामिल किया जा सकेगा.
इस पर मंत्रालय और केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) में विचार किया जाएगा जो देश में शिक्षा संबंधी सर्वोच्च नीति नियंता इकाई है.
स्मृति ने कहा कि छात्रों और अभिभावकों से बातचीत के दौरान यह विचार सामने आए कि वे पाठ्यक्रम के बारे में नवीनतम सूचना और कोर्स के चयन में विविधता चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘वे कुछ ऐसे विकल्प चाहते हैं जो इस समय व्यावहारिक हों लेकिन ऐसे विकल्प भी चाहते हैं जो उन्हें भविष्य के लिए तैयार करें’’.
दसवीं कक्षा में फिर से बोर्ड परीक्षा शुरू किए जाने की मांग के संबंध में ईरानी ने केवल इतना कहा कि इसका फैसला शिक्षा संबंधी केंद्रीय सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) को करना होगा.
उन्होंने कहा कि बड़ा नीतिगत फैसला सीएबीई जैसे मंच पर और राज्यों के संयोजन से लेना होगा.
छात्रों से अधिक फीस वसूली करने वाले कुछ संस्थानों की ओर ध्यान आकर्षित किए जाने पर मंत्री ने कहा कि यह देखने के लिए वह जल्द ही एक विशेष बैठक बुलाएंगी कि क्या किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘‘यदि घोर उल्लंघन हो रहा है तब मैं यह पता लगाउंगी कि वे क्या संभावनाएं हैं जो एक नियामक तलाश सकता है’’. उन्होंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री के उस कथन को उद्धृत किया कि ‘‘कानून की कमी नहीं है बल्कि क्रि यान्वयन की कमी है’’.
विश्व के 100 शीर्ष संस्थानों में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय का नाम शामिल नहीं होने को लेकर हो रही आलोचनों पर स्मृति ने कहा कि रैकिंग एजेंसियों के मूल्यांकन के अपने मानदंड हैं.
ईरानी ने जोर देकर कहा कि भारत का जल्द ही अपना रैकिंग सिस्टम होगा.
उन्होंने कहा, ‘‘भारत में हम अपने संस्थानों के लिए खुद का रैकिंग सिस्टम तैयार करने में लगे हैं. वाइस चांसलर, आईआईटी निदेशक और हर कोई एक साथ बैठकर इस तैयारी में जुटा है कि खुद की रैकिंग कैसे की जाए’’.
नए आईआईटी और आईआईएम से मौजूदा प्रतिष्ठित संस्थानों की ब्रांड वैल्यू कम होने संबंधी आशंकाओं को खारिज करते हुए ईरानी ने कहा, ‘‘हम आईआईटी और आईआईएम में ढांचागत उन्नयन के साथ अपने फैकल्टी और अन्य संसाधनों की क्षमताओं में इजाफा सुनिश्चित कर रहे हैं’’.
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