हरियाणा में मुख्यमंत्री पद के लिए लंबी लाइन, किसके सिर बंधेगा ताज?

Last Updated 20 Oct 2014 07:55:09 AM IST

हरियाणा विधान सभा चुनाव में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत के बाद अब वहां सीएम पद के लिए नामों की एक फेहरिस्त है. इनमें से एक नाम शीर्ष पर है.


जाट नेता कैप्टन अभिमन्यु

बीजेपी हरियाणा में पहली बार अकेले चुनाव लड़कर बहुमत हासिल सरकार बनाएगी. पिछले दस साल से प्रदेश में राज कर रही कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेलते हुए बीजेपी ने जीत हासिल की.

दूसरे नंबर पर इंडियन नेशनल लोकदल रहा, कांग्रेस को विपक्ष का दर्जा भी नहीं मिला. महाराष्ट्र के तरह ही हरियाणा में भी बीजेपी ने बिना सीएम उम्मीदवार की घोषणा करते हुए चुनाव लड़ा था. ऎसे में यहां भी सवाल पैदा होता है कि हरियाणा का मुख्यमंत्री कौन बनेगा?

हरियाणा में सीएम बनने की लाइन में बीजेपी के कई नेता लगे हुए हैं. प्रदेश के जाट नेता कैप्टन अभिमन्यु सीएम उम्मीदवारों में शीर्ष दावेदार हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पहले संकेत दिए थे कि इन्हें राज्य की राजनीति में बड़ी भूमिका दी जाएगी.

हाल के लोकसभा चुनाव में अभिमन्यु को बीजेपी की तरफ से टिकट नहीं मिला था. सीएम बनने की लाइन में दूसरे नंबर पर प्रदेश के अन्य जाट नेता और पीएम मोदी के नजदीकी ओम प्रकाश धनकड़ हैं.

तीसरे नंबर पर आरएसएस का समर्थन हासिल मनोहर लाल खट्टर हैं. खट्टर का यह पहला चुनाव है और उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव भी नहीं है. सीएम की रेस में चौथे नंबर पर ब्रहाम्ण उम्मीदवार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राम बिलास शर्मा हैं. करीब दो दशक पहले बंशीलाल की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. लेकिन पिछले 18 साल में इन्होंने कोई चुनाव नहीं जीता है.

इसके अलावा राव इंद्रजीत, कृष्णपाल गुर्जर और अनिल विज भी रेस में शामिल हैं.

बीजेपी ने हरियाणा में कांग्रेस से सत्ता हथियायी 

हरियाणा की राजनीति में शानदार आगाज करते हुए बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में पहली बार अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया और कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को जबर्दस्त हार का स्वाद चखाया.  

नरेंद्र मोदी की लहर के बल पर इस बार लोकसभा चुनाव में हरियाणा में सात सीटें हासिल करने वाली भाजपा ने अब विधानसभा चुनाव में 47 सीटें हासिल की जो कि 90 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी संख्या से एक सीट अधिक है.

बाकी बची 43 सीटों में से कांग्रेस ने 15, इनेलो 19, हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) दो, शिरोमणि अकाली दल और बसपा एक-एक और निर्दलीय पांच सीटों पर विजयी रहे.

1966 में हरियाणा के गठन के बाद से यह बीजेपी का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. पार्टी ने 1987 में सबसे अधिक 16 सीटें जीती थी जबकि 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था. पार्टी 2009 के विधानसभा चुनाव में मात्र चार सीटों पर जीत दर्ज कर पायी थी.

हरियाणा में इस बार के विधानसभा चुनाव में मुकाबला बेहद रोमांचक था क्योंकि दौड़ में कई पार्टियां थीं. भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता हथिया ली जिसने जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में राज्य में करीब एक दशक तक शासन किया.

तीसरे स्थान पर ही कांग्रेस
कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का काबू में करने पर असफल रही और तीसरे स्थान पर रही. कांग्रेस की सीटों की संख्या 2009 में 40 से घटकर इस बार 15 हो गई.

इनेलो का भी फ्लॉप प्रदर्श
जेल में बंद ओम प्रकाश चौटाला नीत इनेलो इस बार के चुनाव करो या मरो की स्थिति का सामना कर रही थी, पार्टी के ‘‘सहानुभूति’’ कारक ने भी काम नहीं किया. पार्टी यह आरोप लगाये जाने के बाद विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही थी कि शिक्षक भर्ती घोटाले में तिहाड़ जेल में सजा काट रहे 79 वर्षीय चौटाला को फंसाया गया है.

स्वास्थ्य के आधार पर जमानत हासिल करके राज्य में प्रचार करने वाले चौटाला पार्टी का मनोबल नहीं बढ़ा पाये और इसके उम्मीदवार मात्र 19 सीटों पर ही जीत हासिल कर सके.

विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी से संबंध तोड़ने वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) मात्र दो सीटें ही हासिल कर सकी. पार्टी अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पुत्र कुलदीप विश्नोई (आदमपुर) और उनकी पत्नी रेणुका हांसी से चुनाव जीत गए. यद्यपि पार्टी के अन्य 63 उम्मीदवार चुनाव हार गए. चुनाव हारने वालों में कुलदीप के बड़े भाई चंद्र मोहन भी शामिल हैं जो नलवा से हार गए.

एचजेसी की सहयोगी जन चेतना पार्टी (एचसीपी) ने सीट बंटवारा फामरूले के आधार पर 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे. एचसीपी संस्थापक एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा अपनी पारंपरिक अंबाला सीट से चुनाव हार गए जबकि उनकी पत्नी का कालका से बेहद खराब प्रदर्शन रहा.

प्रचार के दौरान मोदी ने पूरे राज्य में करीब एक दर्जन चुनावी रैलियां की और प्रतिद्वंद्वी कांगेस और इनेलो पर निशाना साधा.

हुड्डा बुरी तरह से पराजित

भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद हुड्डा को विकास के बल पर लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का भरोसा था लेकिन भाजपा ने उसे बुरी तरह से पराजित किया. ऐसा इसके बावजूद हुआ कि ऐसा माना जाता था कि भाजपा का राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कोई भी आधार नहीं है.
 



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