कोलगेट मामले में रोजाना सुनवाई, विशेष जज व अभियोजक नियुक्त

Last Updated 26 Jul 2014 05:33:23 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कोयला घोटाले के ट्रायल के लिए विशेष जज एवं विशेष अभियोजक नियुक्त किया गया है. साथ ही आदेश दिया है कि कोयला घोटाले का ट्रायल दिन-प्रतिदिन हो.


कोलगेट घोटाले का मामला (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश भरत पराशर को कोयला घोटाले के ट्रायल के लिए विशेष जज नियुक्त किया है जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा को विशेष अभियोजक नियुक्त किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट तथा दिल्ली सरकार को दो सप्ताह के अंदर विशेष जज और विशेष अभियोजक की नियुक्ति के संबंध में अधिसूचनाएं जारी करने का निर्देश दिया है. साथ ही आदेश दिया है कि कोयला घोटाले का ट्रायल दिन-प्रतिदिन हो. ट्रायल कोर्ट के अलावा और कोई भी अदालत इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी. सुप्रीम कोर्ट को ही इस मामले में दखल का अधिकार होगा. जरूरत पड़ने पर ही सुप्रीम कोर्ट इस मामले में किसी भी आवेदन पर सुनवाई करेगा.

चीफ जस्टिस राजेन्द्रमल लोढा, जस्टिस मदन लोकुर और कुरियन जोसेफ की बेंच ने कहा कि हम सक्षम विभागों को निर्देश देते हैं कि दिल्ली उच्चतर न्यायिक सेवा के अधिकारी भरत पराशर को विशेष तौर पर कोयला ब्लाक आवंटन घोटाले में दर्ज भारतीय दंड संहिता, भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम, हवाला मामले तथा अन्य अपराधों के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष जज नियुक्त करने के संबंध में अधिसूचना जारी करें.

\"\"बेंच ने कहा कि आदेश जारी किए जाने की तिथि से दो सप्ताह के भीतर नियुक्ति के संबंध में अधिसूचनाएं जारी की जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने इसी क्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा को विशेष अभियोजक नियुक्त करने के संबंध में दो सप्ताह के भीतर अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया. वह सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से विशेष अदालत के समक्ष पेश होंगे.

न्यायालय ने कहा कि इस मामले की व्यापकता के मद्देनजर ऐसी नियुक्ति होने पर चंडीगढ़ स्थित फौजदारी मामलों के जाने माने वकील चीमा जांच से संबंधित सारी सामग्री और दस्तावेज अपनी राय और विशेष अदालत की सहायता के लिए देख सकेंगे और वह मदद के लिए अपनी पसंद के वकीलों का दल रखने के लिए स्वतंत्र होंगे. न्यायालय ने कहा कि विभिन्न अदालतों में लंबित कोयला ब्लाक आबंटनों में कथित घोटाले से संबंधित सारे मुकदमे विशेष न्यायाधीश की अदालत को सौंप दिए जाएंगे.  मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को न्यायालय ने सीबीआई को सतर्कता आयुक्तों की दो रिपोर्ट में से एक के संबंध में मुख्य सतर्कता आयोग से संपर्क करने की अनुमति दे दी.

जांच ब्यूरो के अनुसार यह रिपोर्ट कुछ परेशानी पैदा कर रही है. न्यायालय ने कहा कि जांच ब्यूरो उस मामले से संबंधित दस्तावेजों के साथ सीवीसी से संपर्क कर सकता है जिसमें उसने दो जुलाई को रिपोर्ट दी थी.

इस बीच, विशेष लोक अभियोजक के मसले पर मंतण्रा के दौरान न्यायालय ने कहा, ‘हम फौजदारी के बेहतरीन वकील चाहते हैं जो समय दे सके, इसीलिए हम सभी नामों पर विचार करके संभावना तलाश रहे हैं और विचार सही व्यक्ति को रखने का है.’ इसी पृष्ठभूमि में न्यायालय को सूचित किया गया कि पूर्व सालिसीटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम इस मामले में मुकदमा चलाने के लिए विशेष लोक अभियोजक की जिम्मेदारी वहन करने के लिए तैयार नहीं है तो अन्य वकीलों के नामों के बीच चीमा सर्वसम्मति की पसंद बनकर उभरे.

न्यायालय 16 दिसम्बर के सामूहिक हत्या और बलात्कार के मामले में अभियोजक की भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता दयान कृष्णन के पक्ष में था, लेकिन कोयला खदान कांड में जनहित याचिका दायर करने वाले वकील मनोहर लाल शर्मा ने इसका विरोध किया और कहा कि वह आम आदमी पार्टी के नजदीकी हैं जिसने उन्हें दिल्ली में 49 दिन के शासन के दौरान सरकारी वकील नियुक्त किया था.

हालांकि कृष्णन के मामले में इस तरह के तर्क से न्यायालय सहमत नहीं था, लेकिन उसने कहा कि वह ऐसे व्यक्ति को विशेष लोक अभियोजक बनाना चाहते हैं जिसके बारे में एकराय हो.

इसी दौरान सालिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी भी कृष्णन के पक्ष में हैं और उन्होंने मुंबई के फौजदारी मामलों के प्रसिद्ध वकील सतीश मानशिन्दे के नाम का सुझाव दिया जिन्हें राजधानी में इटली के मरीन के मुकदमे की सुनवाई के लिए विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था.

सुनवाई के दौरान मनशिन्दे के जूनियर ने न्यायालय को सूचित किया कि वह यह जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं और वह इटली के मरीन मामलों के सिलसिले में पहले ही दिल्ली शिफ्ट हो चुके हैं. इस पर न्यायालय ने कहा कि वह मुंबई के एक व्यस्त फौजदारी वकील हैं और आगे चलकर कुछ असुविधा होने की भी संभावना है.

इस प्रक्रि या के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन और सिद्धार्थ लूथरा का नाम भी सामने आया, लेकिन हितों के टकराव के कारण उनके नाम आगे नहीं बढ़ सके. बाद में अतिरिक्त सालिसीटर जनरल मनिन्दर सिंह ने चीमा के नाम का सुझाव दिया और उनकी सहमति लेने के बाद सभी पक्षों ने उनके नाम पर तैयार हो गए तो न्यायालय ने इस बारे में आदेश पारित कर दिया.



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