सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक धारा 377 में संशोधन की कोई योजना नहीं : केंद्र
केंद्र सरकार ने मंगलवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक भारतीय दंड संहिता की धारा 377 में संशोधन करने या उसे रद्द करने की कोई योजना नहीं है.
समलैंगिकों के लिए धारा 377 (फाइल फोटो) |
समलैंगिकों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करने के लिए धारा 377 में संशोधन करने या उसे रद्द करने की केंद्र सरकार की अभी कोई योजना नहीं है क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.
गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में सदस्यों के सवालों के लिखित जवाब में बताया, \'\'नहीं. मामला उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन है. उच्चतम न्यायालय द्वारा अपना फैसला दिए जाने के बाद ही आईपीसी की धारा 377 के संबंध में फैसला लिया जा सकता है.\'\'
वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या सरकार ने आईपीसी की धारा 377 में संशोधन या उसे निरस्त करने का कोई प्रस्ताव किया है.
उच्चतम न्यायालय ने 11 दिसंबर 2013 को समलैंगिक यौन संबंधों को अपराधीकरण की श्रेणी से निकालने वाले उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए कानून में संशोधन के लिए गेंद संसद के पाले में फेंक दी थी.
उच्चतम न्यायालय इस समय इस मामले पर एक उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई कर रहा है.
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