मृतक के खिलाफ सीबीआई की अपील!

Last Updated 14 Jul 2014 05:54:14 PM IST

देश की शीर्षस्थ जांच एजेंसी सीबीआई द्वारा मृतक के खिलाफ अपील दायर करने के कारनामे ने सुप्रीम कोर्ट को भी हैरत में डाल दिया.


(फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फौजदारी मामले में मृतक के खिलाफ अपील दायर करने का वाजिब कारण नजर नहीं आता.
 
जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई और मदन लोकुर की बेंच ने कहा कि पटियाला की विशेष अदालत ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के क्षेत्रीय प्रबंधक एसपी गुप्ता को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत ढाई साल के कारावास का दंड दिया था. लेकिन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अपील पेंडिंग के दौरान ही उसकी मौत हो गई.
 
गुप्ता के अलावा ट्रायल कोर्ट ने दो अन्य अभियुक्तों संजीव भल्ला और मेजर पुरुषोत्तम सिंह को भी ढाई-ढाई साल की सजा सुनाई थी. हालांकि इन्हें जालसाजी के जुर्म में आईपीसी की धारा 420 के तहत दोषी करार दिया गया था. इस मामले में सिर्फ सीबीआई ने ही नहीं, बल्कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी घोर लापरवाही बरती.
 
हाईकोर्ट ने सभी मुजरिमों को प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट, 1958 के तहत यह कहकर नेकचलनी पर छोड़ दिया कि वह 20 दिन की जेल काट चुके हैं. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सात लाख रुपये के गबन की घटना 1996 में हुई थी. अभियुक्तों ने लम्बे ट्रायल की पीड़ा को भुगता. इस कारण 20 दिन की जेल की सजा पर्याप्त है. जबकि हकीकत यह थी कि चार मई, 2010 को हाई कोर्ट के यह फैसला सुनाने से पहले ही गुप्ता स्वर्ग सिधार चुके थे.
 
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सजायाफ्ता कैदी को प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट का लाभ नहीं दिया जा सकता.
 
 
एजेंसी ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने जालसाजी का मुकदमा दर्ज होने के तीन साल बाद 1999 में ही अपना निर्णय सुना दिया था, इसलिए लम्बी कानूनी प्रक्रिया से प्रताड़ित होने की वजह वाजिब नहीं है. 
 
सुप्रीम कोर्ट में अपील पर सुनवाई के दौरान सीबीआई की लापरवाही सामने आई. सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि आपराधिक मामलों में मुजरिम की मौत होने पर उसके खिलाफ मुकदमा समाप्त हो जाता है.सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में मृतक को प्रतिवादी बनाया है. यह हास्यास्पद है. हाईकोर्ट ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि सिर्फ एसपी गुप्ता को ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था. बाकी दोनों को जालसाजी के अपराध में सजा दी गई थी, इसलिए सीबीआई का मकसद गुप्ता को प्रोबेशन पर छोड़ने पर केन्द्रित है. जबकि वह इस दुनिया में नहीं हैं.
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने मई 2010 में अपना फैसला सुनाया. इस बीच, मेजर पुरुषोत्तम सिंह प्रोबेशन की अवधि पूरी कर चुके हैं. उनके जमानती को भी डिस्जार्च किया जा चुका है. संजीव भल्ला का पूरा ब्योरा अदालत में पेश नहीं किया गया है, लेकिन उनके जमानती को भी मुक्त किया जा चुका होगा. विचित्र तथ्यों के कारण हाई कोर्ट के फैसले में बदलाव संभव नहीं है.

विवेक वार्ष्णेय
एसएनबी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment