सहारा ने सुप्रीम कोर्ट में नया प्रस्ताव पेश किया

Last Updated 18 Apr 2014 06:28:21 AM IST

सहारा ने सुप्रीम कोर्ट में नया प्रस्ताव पेश किया है. नए प्रस्ताव में ढाई हजार करोड़ रुपए की राशि रिहाई के तीन दिन के अंदर जमा करने का आश्वासन दिया गया है.


सहारा-सेबी विवाद : सहारा ने सुप्रीम कोर्ट में नया प्रस्ताव पेश किया

सुप्रीम कोर्ट में बृहस्पतिवार को सहारा की ओर से अपना पक्ष रखा गया. सुनवाई सोमवार को भी जारी रहेगी.

जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जगदीश सिंह केहर की बेंच के समक्ष सहारा की ओर से नया प्रस्ताव पेश किया गया. प्रस्ताव में कहा गया है कि रिहाई का आदेश पारित होने तथा बैंक खातों को ऑपरेट करने पर लगी रोक हटने के तीन दिन  के अंदर सेबी को ढाई हजार करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया जाएगा.

इसके उपरांत दो माह में बाकी साढ़े सात हजार करोड़ अदा कर दिए जाएंगे. इसमें 5000 करोड़ की बैंक गारंटी भी शामिल है. सहारा के नए प्रस्ताव पर बेंच सोमवार को सुनवाई करेगी. अदालत ने सहारा से कहा कि वह प्रस्ताव की एक प्रति सेबी को सौंप दे. अदालत ने सहारा से यह भी कहा कि इस बीच प्रस्ताव को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाए.

दूसरी ओर, सहारा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस गणेश ने अदालत को बताया कि सेबी ने नकदी के लेनदेन को लेकर अदालत के सामने कंपनी की एक गलत तस्वीर पेश की है. सहारा की बचत और जमा योजनाएं समाज के वंचित वर्ग को लाभ पहुंचाने के इरादे से तैयार की जाती हैं.

इस वर्ग के पास बैंकिंग सुविधाएं भी नहीं हैं. भारतीय रिजर्व बैंक ने भी एक सव्रे का हवाला दिया है जिसमें साफतौर पर कहा गया है कि देश के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों के पास बैंकिंग सुविधाएं नहीं हैं. इन लोगों के बैंक में खाते नहीं हैं.

रिजर्व बैंक के प्रयासों के बावजूद करोड़ों लोगों के बैंक खाते नहीं खुल पाए हैं. इस कारण उनसे बचत योजनाओं के जरिए नकद में छोटी-छोटी रकम एकत्र की जाती है और मियाद पूरी होने पर उन्हें ब्याज सहित पूरा पैसा नकद ही वापस किया जाता है.

उन्होंने अदालत को बताया कि सहारा के 4700 दफ्तर देशभर में फैले हुए हैं. सहारा इंडिया के ये दफ्तर दूर-दराज के इलाकों में हैं जहां आवागमन की भी समुचित सुविधा नहीं है. अधिसंख्य शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और समाज के निचले तबके के लोग छोटी-छोटी बचत से अपना भविष्य बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं. सहारा उन्हें बचत करने के लिए प्रोत्साहित करता है.

प्रत्येक निवेशक को अलग-अलग योजनाओं में निवेश एक अलग इकाई के रूप में दर्ज किया जाता है. इस कारण तीन करोड़ निवेशक हैं. अगर एक व्यक्ति अलग-अलग स्कीम में निवेश करता है तो उसे अलग निवेशक माना जाता है. निवेशकों में रिक्शा चालक, स्ट्रीट वेंडर, दिहाड़ी मजदूर व प्लम्बर आदि शामिल होते हैं. नकद लेनदेन के बही-खातों का नियमित ऑडिट होता है. 96 प्रतिशत लेनदेन नकद होता है.

लगभग चार फीसदी लेनदेन ही चेक या ड्राफ्ट के जरिए होता है. आयकर कानून के अनुसार स्रोत पर टैक्स भी काटा जाता है और इनकम टैक्स विभाग में समय पर जमा किया जाता है. सहारा ने 726 करोड़ टीडीएस काटकर आयकर विभाग में जमा किया है. बेंच ने भी माना कि अगर आयकर नियमों के अनुसार टीडीएस काटा जाता है तो यह एक कानून के तहत किया गया लेनदेन है.

वरिष्ठ अधिवक्ता एस गणेश ने कंपनी अधिनियम की धारा 73(2) का हवाला दिया जिसमें साफतौर पर कहा गया है कि चेक और ड्राफ्ट के अलावा भुगतान नकद भी किया जा सकता है. सेबी ने कंपनी एक्ट के इस प्रावधान को दरकिनार करके सहारा की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है. सेबी ने जानबूझकर सहारा द्वारा पेश किए दस्तावेज का सत्यापन नहीं किया. इनमें बांड भी थे. सहारा ने पहला मौका मिलते ही सभी रिडेंपशन वाउचर सेबी के पास जमा कर दिए थे.

इनमें बांड भी शामिल थे. सेबी ने सहारा का पक्ष जाने बिना 13 फरवरी, 2013 को उसकी अर्जी अस्वीकर कर दी. सहारा ने कभी भी अपना स्टैंड नहीं बदला, लेकिन सेबी ने अपनी कमी छिपाने के लिए सहारा पर अनर्गल आरोप लगाए.



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