हरीश चंद्र बर्णवाल का कहानी संग्रह 'सच कहता हूं' प्रकाशित

Last Updated 09 May 2012 10:58:06 PM IST

टेलीविजन पत्रकार हरीश चंद्र बर्णवाल की कहानियों का संग्रह “सच कहता हूं” दिल्ली के वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई है.


हरीश की ये तीसरी किताब है. इसमें 6 लंबी कहानियां और 14 लघु कथाएं हैं.

कहानियों में समसामयिक विषयों को भावनात्मक तौर पर बहुत ही अच्छे से उभारा है.

हरीश ने कई ऐसे मुद्दों को कहानियों में जगह दी है, जो इससे पहले कभी नहीं आईं.

‘निकाह’, ‘बागबां’ और ‘बाबुल’ जैसी फिल्मों की कहानियां लिखने वाली लेखिका अचला नागर लेखक की कहानियों के बारे में लिखती हैं कि “हरीश की कहानियों में तीन बातें हैं. संवेदनशीलता कूट-कूटकर भरी हुई हैं. दूसरी पैनी दृष्टि और तीसरी ईमानदारी दिखाई देती है. एक तरह से दूध को मथते-मथते ये मक्खन निकला है. तभी उन्होंने 16 सालों में सिर्फ 6 कहानियां लिखी हैं.”

पहली कहानी ‘यही मुंबई है’ अंधे बच्चों पर आधारित है. इस कहानी को अखिल भारतीय अमृत लाल नागर पुरस्कार भी मिल चुका है.

दूसरी कहानी ‘चौथा कंधा’ देहाती समाज में चल रही हलचलों को तात्कालिकता के विश्वसनीय बिंबों में प्रस्तुत करती है.

तीसरी कहानी का नाम है “तैंतीस करोड़ लुटेरे देवता”. ये कहानी लेखक ने जम्मू के रघुनाथ मंदिर में घूमने के दौरान अपने अनुभवों के आधार पर लिखा है. साथ ही पंडितों के ऊपर कहानी के माध्यम से जमकर प्रहार किया है.

चौथी कहानी “अंग्रेज, ब्राह्मण और दलित” के जरिये हिंदू समाज में व्याप्त जातिवाद के जहर को दिखाने की कोशिश की गई है. पांचवीं कहानी “काश मेरे साथ भी बलात्कार होता” एक बहुत ही संवेदनशील कहानी है.

आखिरी लंबी कहानी है “अंतर्विरोध” इस  कहानी में मुंबई के परिवेश और आधुनिक समाज की दिक्कतों को मार्मिक तरीके से उकेरा गया है.

कहानीकार हरीश चंद्र बर्णवाल ने अपनी लघुकथाओं में या तो अस्पताल की दिक्कतों को या फिर मीडिया में व्याप्त परेशानियों को उठाने की कोशिश की है.

हरीश चंद्र बर्णवाल को उनकी कहानियों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं. “सच कहता हूं” किताब उनका पहला कहानी संग्रह है.



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