संस्कृत के संवर्धन के लिए सरकार प्रतिबद्ध: प्रधानमंत्री

Last Updated 05 Jan 2012 09:05:44 PM IST

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि संस्कृत 'भारत की आत्मा' है और उनकी सरकार इस प्राचीन भाषा के संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध है.


उन्होंने कहा कि संस्कृत के बारे में यह गलत धारणा बनी हुई है कि वह सिर्फ धार्मिक श्लोकों और कर्मकांड की भाषा है.

नई दिल्ली में आयोजित 15वें विश्व संस्कृत सम्मेलन में मनमोहन सिंह ने कहा संस्कृत भारत की आत्मा है. सरकार संस्कृत के संवर्धन और इसके विकास के लिए प्रतिबद्ध है.

उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्व की सबसे पुरानी जीवित भाषाओं में शुमार है, यद्यपि इसके बारे में एक गलत धारणा है कि यह केवल धार्मिक श्लोकों और कर्मकांड की भाषा है.

उन्होंने कहा कि इस प्रकार की भ्रांति न केवल इस भाषा की महत्ता के प्रति अन्याय है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि कौटिल्य, चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त,  भाष्कराचार्य जैसे इस भाषा के महान लेखकों, विचारकों, ऋषि-मुनियों और वैज्ञानिकों के कार्यो से हम अनभिज्ञ हैं.

उन्होंने कहा कि इस प्राचीन भाषा में विश्व साहित्य के न केवल महान ग्रंथ हैं, बल्कि गणित, चिकित्सा, वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र, कला एवं मानविकी के ज्ञानकोष भी हैं.

मनमोहन सिंह ने कहा कि यदि हम लुप्त सम्पर्को की खोज कर लें और आवश्यक बहु-विषयक को विकसित कर लें तो संस्कृत के ज्ञान में इतनी क्षमता है कि वह वर्तमान समय की ज्ञान प्रणालियों को और अधिक समृद्ध कर सकती है.

उन्होंने कहा कि सरकार के तीन संस्थान- राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ एवं राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ संस्कृत के संवर्धन में सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं.

सिंह ने कहा कि समाचारपत्रों और पत्रिकाओं सहित संस्कृत साहित्य के प्रकाशन और दुर्लभ पुस्तकों के पुनर्प्रकाशन के लिए वित्तीय सहायता भी दी जाती है. हम संस्कृत के संवर्धन, विकास एवं समृद्धि के लिए अपने प्रयासों को और भी मजबूत करेंगे.

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में भाषा युगों से मूल्यों एवं विचारों का स्रोत रही है.



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