चावला के खिलाफ भाजपा की जंग बंद नहीं

Last Updated 20 Apr 2009 08:20:45 PM IST


नयी दिल्ली। भाजपा ने आज संकेत दिया कि वह नवीन चावला के मुख्य चुनाव आयुक्त बन जाने पर भी उन्हें आयोग से हटाने के अपने अभियान को जारी रखने के साथ इसके लिए सूचना के अधिकार के तहत जरूरी कागजात हासिल करने के लिए कानूनी कार्रवाई के विकल्प खुले रखेगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता अरूण जेटली ने यहां बताया कि चावला के खिलाफ अपने केस को मजबूत करने के लिए सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत वह उन तथ्यों को जानने के प्रयास कर रहे हैं जिनके आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त पद से आज रिटायर हुए एन गोपालस्वामी ने उन्हें आयोग से हटाने की सिफारिश की थी। उन्होंने कहा कि विधि मंत्रालय द्वारा इस संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी दिए जाने से इंकार किए जाने के खिलाफ पार्टी कानूनी कार्रवाई करेगी। यह पूछे जाने पर कि पार्टी ने चावला को चुनाव आयोग से हटाने की जो मुहिम छेड़ी थी क्या अब उनके मुख्य चुनाव आयुक्त बन जाने पर भी वह उसे जारी रखेगी जेटली ने कहा आरटीआई के पास जा कर मैं और क्या कर रहा हूं। पहले सारी जानकारी तो ले लूं। भाजपा नेता ने बताया कि उन्होंने आरटीआई के तहत विधि मंत्रालय से चावला को आयोग से हटाने संबंधी गोपालस्वामी के पत्र और उस पत्र पर सरकार के जवाब की प्रतियां मांगी थीं। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का खेद है कि राष्ट्रपति भवन और विधि मंत्रालय से जवाब आया है कि यह मामला विश्वास्यजन्य प्रकृति का होने के कारण पत्र की प्रति उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है। जेटली ने कहा भाजपा की सबसे पहली आपत्ति यह है कि इसमें राष्ट्रपति भवन को बीच में नहीं पड़ना चाहिए था। दूसरी आपत्ति यह है कि यह डाक्टर और मरीज़ या वकील और क्लाइंट का मामला नहीं है जिसे विश्वासजन्य प्रकृति का बता कर जानकारी देने इंकार कर दिया जाए। उन्होंने इसे आरटीआई का माखौल बताया। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार अपनी पांच साल की सबसे बड़ी उपलब्धि आरटीआई को मानती है लेकिन वह उन जानकारियों को उपलब्ध कराने को तैयार नहीं है जिनसे उस पर आंच आती हो। भाजपा नेता ने कहा कि वह यह जानना चाहते थे कि गोपालस्वामी ने किन आधार पर चावला को आयोग से हटाने की सिफारिश की थी और यह बात सारे देश को जानने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि देश को यह जानने का अधिकार है कि गोपालस्वामी ने मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर चावला को चुनाव आयोग से हटाने की सिफारिश की थी या फिर उनके विरूद्ध किसी खास दल के लिए पक्षपाती आचरण के ठोस सुबूत थे।



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