रक्तरंजित गाथा का गवाह गढ़कुंडार का किला
मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित गढ़कुंडार का किला ऐतिहासिक समृद्धि का प्रतीक होने के साथ-साथ एक ऐसी रक्तरंजित प्रणय गाथा का भी गवाह है जिसमें खंगार क्षत्रिय राजवंश को खत्म करने की साजिश को अंजाम दिया गया था।
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बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में स्थित गढ़कुंडार किले का नाता बुंदेला, चंदेल और खंगार नरेशों से रहा है, परंतु इसके पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को जाता है। वर्तमान में खंगार क्षत्रिय समाज के परिवार गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश के अलावा बुंदेलखंड में बसते हैं। 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेतसिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस दुर्ग पर कब्जा करने के बाद खंगार राज्य की नींव डाली थी।
यह किला उस दौर की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है बल्कि उस खूनी प्रणय गाथा के अंत का गवाह भी है, जो विश्वासघात की नींव पर रची गई थी।
खेतसिंह गुजरात राज्य के राजा रूढ़देव का पुत्र था। रूढ़देव और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह अभिन्न मित्र हुआ करते थे। इसके चलते पृथ्वीराज चौहान और खेतसिंह बचपन से ही मित्र हो गए। खेतसिंह की गिनती पृथ्वीराज के महान सेनापतियों में की जाती थी। इस बात का उल्लेख चंदबरदाई के रासो में भी है।
गढ़कुंडार में खेतसिंह ने खंगार राज्य की नींव डाली। यहां पांच पीढ़ियों तक इस राजवंश ने राज्य किया। इस परंपरा के अंतिम शासक नागदेव को जागीरदार सोहनपाल की बेटी रूपकुंवर से प्रेम हो गया। नागदेव के पिता हुरमत सिंह खंगार ने सोहनपाल के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर महत्वाकांक्षी सोहनपाल ने हामी भर दी और एक साजिश रच डाली। सोहनपाल ने एक शर्त रख दी कि बारात में खंगार वंश का हर व्यक्ति शामिल होगा।
बारात जब पहुंची तो योजना के मुताबिक बारातियों को शराब पिलाई गई। सभी बारातियों के मदमस्त होते ही सोहनपाल के सैनिकों और साथियों की तलवारें खंगारों पर टूट पड़ी। कुछ समय में ही विवाह स्थल खून से रंग गया। साजिश रचने वालों ने महिलाओं और बच्चों तक को भी नहीं बख्शा। झांसी गजेटियर के मुताबिक गढ़कुण्डार के पतन की घटना 1288 की है। इरविन इसे 1252 का बताते हैं। गढ़कुंडार पर उपन्यास लिखने वाले वृन्दावनलाल वर्मा ने यह समय 1288 माना है।
गढ़कुंडार का किला पाषाण कला का अद्भुत नमूना है, जो कई किलोमीटर दूर से नजर आने के साथ लुभाता भी है मगर उसकी ओर बढ़ने के साथ वह विलुप्त हो जाता है और सामने पहुंचने पर अचानक प्रकट होता है। यह किला चारों ओर से पहाड़ियों से घिरे होने के कारण लुका-छिपी करता है।
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