अद्भुत वास्तुकला का नमूना महाबलीपुरम

Last Updated 19 Jul 2012 03:28:21 PM IST

शोर टेम्पल यानी समुद्र तट का मंदिर महाबलीपुरम दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है और वास्तुकला की दृष्टि से भी अद्भुत है.


पल्लव राजाओं द्वारा निर्मित मंदिरों का शहर

सातवीं और आठवीं शताब्दी में बंगाल की खाड़ी के तट पर पल्लव राजाओं द्वारा निर्मित मंदिरों का शहर है, जिसे महाबलीपुरम कहते हैं. यह पल्लव राजाओं की राजधानी हुआ करती थी. चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर स्थित इस शहर को शुरू में मामल्लापुरम कहा जाता था.

यह प्राचीन शहर अपने भव्य मंदिरों, स्थापत्य और सागर तटों के लिए प्रसिद्ध है. महाबलीपुरम में बने तरह-तरह के मंदिर जिनमें रथ का आकार, मंडप और एक विस्तृत क्षेत्र है जो गंगा के अवतरण की नक्काशी के साथ ही भगवान शिव की महिमा का बखान करने वाली हजारों मूर्तियों के लिए भी प्रसिद्ध है.

विश्व धरोहर की सूची में शामिल



‘यूनेस्को’ ने इस स्थल को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है. माना जाता है कि पल्लव राजा नरसिंहावर्मन प्रथम के बाद ही इस शहर को ‘मामल्लापुरम’ नाम दिया गया.

पल्लवों का प्रिय खेल कुश्ती हुआ करता था, इसी रूप में राजा नरसिंहावर्मन को ‘महा-मल्ला’ (महान पहलवान) की उपाधि दी गई थी. इस शहर में सातवीं और नवीं शताब्दी के बीच वृहद रूप में ऐतिहासिक स्मारकों का निर्माण हुआ.

द्रविड़ वास्तुकला की दृष्टि से यह शहर अग्रणी है. इस शहर में बने विभिन्न ऐतिहासिक स्मारकों में से कुछ तो विखंडित विशालकाय पत्थरों से बनाये गये हैं जबकि कुछ को पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है.

इनमें मुख्य रूप से अर्जुन पेनेन्स विशाल नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है. 27 मीटर लंबे और 9 मीटर चौड़े व्हेल मछली की पीठ के आकार का विशाल शिलाखंड है जिस पर ईश्वर, मनुष्य, पशु और पक्षियों की आकृतियां उकेरी गई हैं. इस स्थान को महाबलीपुरम की शोभा ही नहीं बल्कि देश का गौरव माना जाता है.

भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में एक

शोर टेम्पल यानी समुद्र तट का मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है. द्रविड़ वास्तुकला के बेहतरीन नमूने वाले यहां तीन मंदिर बनाये गये हैं.

केंद्र में भगवान विष्णु का मंदिर है जबकि उसके दोनों ओर शिव मंदिर हैं. इन मंदिरों से जब सागर की नीली लहरें टकराती हैं तो अद्भुत दृश्य नजर आता है.

यहां का प्रसिद्ध रथ इस स्थान के दक्षिणी सिरे पर स्थित है. पंच पांडवों के नाम पर इन रथों को पां डव रथ कहा जाता है. इन पांच रथों में से चार रथों को एकल चट्टान पर उकेरा गया है जबकि द्रौपदी और अर्जुन रथ चौकोर है.

धर्मराज का रथ सबसे ऊंचा है. यहां स्थित कृष्ण मंडपम के बारे में कहा जाता है कि यह महाबलीपुरम के प्रारंभिक पत्थरों से काटकर बनाये गये मंदिरों में से एक है.

इन मंदिरों की दीवारों पर ग्रामीण जीवन की झलक भी नजर आती है. खास बात तो यह है कि एक शिला पर भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत उठाए हुए भी दिखाया गया है. यहां स्थित वराह गुफा भी काफी प्रसिद्ध है. साथ ही, सातवीं शताब्दी में बनी महिषासुरमर्दिनी गुफा भी अपनी नक्काशी के लिए जानी जाती है.

पत्थरों पर नक्काशी

पत्थरों पर उकेरी गई नक्काशी में भगवान शिव से जुड़ी गंगा के अवतरण की घटना की झलक मिलती है. भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या कर गंगा को धरती पर लाने की प्रार्थना की थी.

यहां की मूर्तिकला में उस अद्भुत दृश्य को जीवंत किया गया है जिसमें देवताओं की भीड़, देवी, पौराणिक चरित्र- किन्नर, गंधर्व, अप्सरा, गंगा, नाग और नागिन के साथ ही जंगली और पालतू जानवर भी बने हैं.
 
पत्थरों को काट कर बना मंदिर जैसे रिवेज जिसका निर्माण राजसिम्हा नरसिंहावर्मन द्वितीय की देखरेख में हुआ, जिसमें ऊंचे पिरामिड के समान टावर और शिव की महिमा का बखान करने वाली हजारों मूर्तियां हैं.

विशालकाय रथ एक मंजिल से लेकर तीन मंजिल तक बने हुए हैं और वास्तुकला की विभिन्न किस्मों का प्रदर्शन करते हैं.



 



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