पर्यटकों को लुभाता है डलहौजी हिल स्टेशन

Last Updated 02 Jun 2012 04:10:24 PM IST

हिल स्टेशन डलहौजी की नैसर्गिक खूबसूरती पर्यटकों को अपनी आगोश में समाने के लिए हमेशा तैयार प्रतीत होती है.


डलहौजी का ऐतिहासिक महत्व भी

चिलचिलाती गर्मी से दूर किसी ठंडे स्थान पर जाने का मन किसका नहीं होगा, जहां चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और हरी-भरी वादियों का विहंगम नजारा देखने को मिले. यदि आप टूर डेस्टिनेशन अभी तक तय नहीं कर पाए हैं, तो हिमाचल प्रदेश स्थित हिल स्टेशन डलहौजी जाएं. चीड़ के पेड़ों से घिरे ढलाननुमा पहाड़ों पर विभाजित रास्तों से पर्यटक पैदल यात्रा कर डलहौजी की खूबसूरत वादियों का नजारा ले सकते हैं.

‘गेटवे ऑफ चंबा वैली’ से मशहूर इस कोलोनियल टाउन की स्थापना 1854 में ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी ने की थी. पहाड़ों से बहती मंद-मंद हवा और विहंगम दृश्य रोमांच से भर देने के लिए काफी है. यहां की नैसर्गिक खूबसूरती पर्यटकों को अपनी आगोश में समाने के लिए हमेशा तैयार प्रतीत होती है.

डलहौजी में प्राकृतिक सौन्दर्य तो है ही यहां का ऐतिहासिक महत्व भी है. यहां की खूबसूरती से अंग्रेज इतने प्रभावित हुए थे कि 18वीं शताब्दी में यहां के राजा से कुछ पहाड़ियों को लॉर्ड डलहौजी ने खरीद लिया था.

आकर्षण जंध्री घाट-

सुभाष बाओली से लगभग आधा किमी दूर स्थित जंध्री घाट में मनोहर पैलेस ऊंचे-ऊंचे चीड़ के पेड़ों के बीच स्थित है. लॉर्ड डलहौजी के आने से पहले यहां चंबा के पूर्व शासक का शासन था. पैलेस के अलावा यहां आप चाहें तो चीड़ के पेड़ से होकर निकलती सुगंधित मंद-मंद हवा में बैठकर पिकनिक का भी मजा ले सकते हैं. डलहौजी से 5 किमी दूर बकरोटा हिल्स से भी बर्फ से ढंकी पहाड़ की चोटियों का नजारा मिलता है.

सतधारा-

पंजपु ला के रास्ते में 2,036 मीटर ऊंचाई पर स्थित सात झरनों वाली सतधारा है, जिसका उपचारात्मक महत्व भी है. पानी में मौजूद मिका मेडिसिनल प्रॉपर्टी के लिए मशहूर है.

सुभाष बाओली-

यहां से भी आप बर्फ से ढंके ऊंचे पर्वतों का विहंगम नजारा देख सकते हैं. यहां स्थित झरने की ऊंचाई 2,085 मीटर है.

कैथोलिक र्चच-

डलहौजी अपने अनगिनत पुराने र्चच के लिए भी मशहूर है. यहां स्थित सेंट फ्रांसिस के कैथोलिक र्चच का निर्माण 1894 में हुआ था.

आस-पास

बड़ा पत्थर- कालाटोप के रास्त पड़ने वाले अहला गांव में घने जंगलों के बीच भुलवानी माता का छोटा सा मंदिर स्थित है. यहां जुलाई में माता के आदर-सत्कार व पूजा- अर्चना के लिए मेले का भी आयोजन किया जाता है. यह डलहौजी से 4 किमी दूर है.

डैनकुंड-

डलहौजी से 10 किमी दूर 2,745 मीटर की ऊंचाई पर स्थित डैनकुंड से पहाड़ियों, घाटियों और नदी व्यास, रावी, चेनाब की कलकल लहरें देख सकते हैं.

पंजपुला-

डलहौजी से सिर्फ 2 किमी दूर पांच पुल ‘फाइव ब्रिजेज’ को भारत के फ्रीडम फाइटर अजित सिंह की याद में बनवाया गया है. यहां स्थित प्राकृतिक टैंक और प्रतिष्ठित लोगों की मूर्ति इस स्थान को और भी शांति का आभास दिलाती है. इन छोटे-छोटे पांच पुलों के नीचे से बहता पानी काफी आकर्षक लगता है.

मान्यता है कि इसके पानी से कई तरह की बीमारियां ठीक होती हैं. साथ ही डलहौजी से ढाई किमी दूर खजीयार झील है, जिसका आकार तश्तरीनुमा है.

कैसे जाएं- जान का समय- मई से लेकर अक्टूबर

कहां ठहरें-

यदि आप फाइव स्टार होटल में नहीं रहना चाहते, तो स्मॉ ल बजट होटल के साथ टूरिस्ट लॉज भी हैं, जहां उचित कीमत पर कमरा मिल जाता है.

मौसम-

गर्मी में यहां का अधिकतम तापमान 30 डिग्री और सर्दियों में 0 डिग्री से नीचे चला जाता है.

कैसे जाएं-

हवाई मार्ग-

नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल (कांगड़ा) है, जो डलहौजी से 140 किमी दूर है.

रेल मार्ग-

नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है, जो अमृतसर, जम्मू, दिल्ली और जालंधर से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है.

सड़क मार्ग-

पठानकोट से चंबा होते हुए डलहौजी बस या टैक्सी से जा सकते हैं. पंजाब और हिमाचल रोडवेज भी बस सेवा उपलब्ध कराते हैं.



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