ऐतिहासिक स्थल है मध्य प्रदेश का चंदेरी
मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में स्थित चंदेरी छोटा किंतु ऐतिहासिक स्थल है. यहां कई दर्शनीय स्थल हैं.
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मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले में स्थित चंदेरी छोटा किंतु ऐतिहासिक स्थल है. पौराणिक काल में चेदिराज के रूप में प्रख्यात चंदेरी नगरी वेत्रवती एवं उर्वशी नदियों के मध्य विंध्याचल की सुरम्य चंद्राकार पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित थी.
इस प्राचीन नगरी पर विभिन्न काल के राजाओं ने राज किया, जैसे- गुप्त, प्रतिहार, गुलाम, तुगलक, खिलजी, अफगान, गौरी, 8 बुंदेला राजपूतों और सिंधिया वंश ने यहां एकछत्र शासन किया.
चंदेरी नगरी को प्रतिहार वंश के महाराज कीर्तिपाल कुरूमदेव ने दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी के बीच बसाया था. इस समूचे क्षेत्र में पुरातत्व विभाग की महत्वपूर्ण सामग्री यत्र-तत्र बिखरी है, जो अपने आपमें साक्ष्य पेश करती है.
स्थापत्य कला के अनूठे प्रमाण यहां के शिलालेखों में रूप में मिलते हैं. इनसे पता चलता है कि यह कला खजुराहो से भी पूर्व के हैं. चंदेरी नगरी में अनेक नयनाभिराम मंदिर, मस्जिद, मठ, सराय, मीनारें, मकबरे, बावड़ियां, मेहमानखाने, महल आदि उल्लेखनीय हैं.
यह नगरी सात परकोटों के बीच बसी हुई है, जिनमें अनेक प्रवेशद्वार हैं. मुख्य द्वार के भी विशेष नाम हैं- जैसे दिल्ली दरवाजा, ढोलिया खूनी दरवाजा, खिलजी दरवाजा, परवन दरवाजा, पछार दरवाजा, रेतबाग दरवाजा, बिना नींव दरवाजा, बादल महल दरवाजा, जौहरी दरवाजा आदि. दर्शनीय स्थल चंदेरी का किला चंदेरी का किला पहाड़ी पर स्थित है.
यह बेतवा नदी के किनारे है. इस विशाल किले के प्रवेश-द्वार का नाम खूनी दरवाजा है. 11 वीं शताब्दी में कीर्तिपाल द्वारा निर्मित चार मील से अधिक लंबी चंदेरी की दीवार यहां के इतिहास की मूक साक्षी है.
परकोटे के अंदर बुंदेलखंडी स्थापत्य वाले नौखंडा महल और हवामहल हैं. इस किले से चंदेरी नगर और उसके करीब का मनमोहक दृश्य नजर आता है. जागेरी देवी मंदिर यह प्राचीन मंदिर पर्वत की खुली गुफा में है. यह सिद्धपीठ भी है, जिसके दर्शन से आत्म-संतुष्टि मिलती है.
बूढ़ी चंदेरी
चंदेरी से 22 किमी. दूर प्रसिद्ध 55 जैन मंदिरों के अवशेष आज भी मौजूद हैं. थूवोनजी 28 किमी. दूर चं देरी से दिगम्बर जैन समाज द्वारा 16 जैन मंदिर बनाए गए हैं. थूवोनजी में थूवोन नाम का संग्रहालय है जहां पुरातत्व विभाग ने दसवीं सदी की जैन मूर्तियों-हिंदू मंदिरों को दस स्थानों का साक्षी बना दिया है.
बैंहटी मठ
यह जगह चंदेरी से 18 किमी. दूर पर दक्षिण-पूर्व दिशा में घने जंगलों के बीच है. यह तांत्रिकों की साधना-स्थली रही है. यहां 16 पत्थरों के बने स्तंभों की बारीक नक्काशी में शेर, हाथी, मोर, घोड़े, हिरण व कमल के फूलों की आकृति है.
यहीं देवी की विशाल प्रतिमा भी है. खंदारगिरि यह स्थल चंदेरी से 2 किमी. पर स्थित दक्षिणांचल में है. यहां 13वीं से 16 वीं सदी तक की भीमकाय शैल प्रतिमाएं बनी हुई हैं. शाह वजीहउद्दीन का मकबरा ख्वाजा मखदूम शाह विलायत के नाम से प्रसिद्ध मकबरा 13 वीं सदी का है.
हजरत शाह यूसुफ
भारत के प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के नजदीकी शिष्यों में थे. ये खलीफा भी रहें. वे अलाउद्दीन के शासन में चंदेरी आकर बस गए थे. इनके नाम पर यहां हर साल 27- 29 मार्च को उर्स लगता है.
दिल्ली दरवाजा
इस विशाल एवं कलात्मक द्वार का निर्माण दिलावर खां गौरी ने 1411 में कराया था. मध्यकाल में यह दिल्ली जाने का सीधा राजमार्ग था. सिंहपुर महल पुरातत्व संग्रहालय महल बुंदेला शासक देवीसिंह के नेतृत्व में 1711 में निर्मित हुआ. इसके नीचे तालाब है जिसे होशंगा शाह गौरी ने 1433 में बनवाया था.
महल में पुरातत्व संग्रहालय भी है. कौशक महल इसका विशाल प्रांगण अफगान शैली में वर्गाकारनुमा है. यह स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है. इसका निर्माण महमूद खिलजी ने जौनपुर को जीतने की खुशी में किया था. इसका नाम ‘कौशकेहफ्त’ रखा, जो कि कौशक मंजिल के नाम से मशहूर हुआ. पुराना मदरसा मध्ययु गीन विविद्यालय के प्राचायरें की यहां समाधियां हैं.
प्रसिद्ध संगीतकार बैजू बावरा की यहां कब्र है. बत्तीस बावड़ी चंदेरी के उत्तर-पश्चिम में स्थित गवर्नर शेर खां ने सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी के आदेश पर बनवायी थी. यहां बत्तीस बावड़ियां बनी हैं जो पानी का लेवल सहज रखने में मदद करती हैं. बावड़ियों की खासियत यह है कि इसके हर घाट पर पानी का लेवल बराबर रहता है.
कट्टी घाटी
चंदेरी से 14 किमी. की दूरी पर यह घाटी में स्थित है. यहां राजपूत स्त्रियों द्वारा किया गया सामूहिक आत्मदाह यहां का मुख्य आकषर्ण है.
चंदेरी की साड़ियां
चंदेरी नगर ऐतिहासिक स्थान होने के साथ-साथ यहां की चंदेरी साड़ियां भी प्रसिद्ध हैं. इन साड़ियों में अत्यंत महीन तथा बेल बूटियों की बुनाई में परंपरा को स्थायी रखा गया है.
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