परीलोक सी खूबसूरत है ‘फूलों की घाटी’

Last Updated 15 May 2012 03:07:07 PM IST

हिमालय क्षेत्र में स्थित ‘फूलों की घाटी’ का अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य है और यही वजह है कि लोग इसे पारलौकिक और परियों का संसार कहते हैं.


नंदा देवी और फूलों की घाटी को ‘राष्ट्रीय उद्यान’ के नाम से जाना जाता है

उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में स्थित वैली ऑफ फ्लावर्स जिसे आमतौर पर ‘फूलों की घाटी’ कहा जाता है, भारत का राष्ट्रीय उद्यान है. नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित है.

वैली ऑफ फ्लावर्स नेशनल पार्क और नंदा देवी की दुर्गम ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियां एक-दूसरे का पूरक हैं. वैली ऑफ फ्लावर्स की हरी-भरी वादियां नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान तक फैली हुई हैं. नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को 1988 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था. इन दोनों स्थानों की खूबसूरती जंस्कर और हिमालय की श्रृंखला के बीच पर्यटकों और पर्वतारोहियों को लगभग एक शताब्दी से लुभाती रही है.

‘राष्ट्रीय उद्यान’

नंदा देवी और फूलों की घाटी को ‘राष्ट्रीय उद्यान’ के नाम से जाना जाता है. पश्चिम हिमालय की घाटियों में स्थित वैली ऑफ फ्लावर्स स्थानीय अल्पाइन फूलों और दूर-दूर तक फैले हरे-भरे घास के मैदान के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है.

प्राकृतिक रूप से समृद्ध यह स्थान लुप्तप्राय जानवरों जिनमें एशियाटिक ब्लैक बियर, स्नो लैर्पड, ब्राउन बियर और ब्लू शीप का प्राकृतिक आवास भी है. बर्फ से ढके पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की पांच सौ से अधिक प्रजातियों से सजा यह क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए प्रसिद्ध स्थल बन गया है.

खोज

इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्मिथ और उनके साथी आर. एल. होल्ड्सवर्थ ने लगाया था. दरअसल, प्रसिद्ध ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक 1931 में गढ़वाल स्थित कामेट शिखर (24,447 फुट) से सफल आरोहण के बाद धौली गंगा के निकट गमशाली गांव से रास्ता भटक जाने के बाद पश्चिम की ओर बढ़ते चले गये.

वे 16,700 फुट ऊंचाई का दर्रा पार करते हुए भ्यूंडार घाटी पहुंचे. वहां से जब वह थोड़ा आगे बढ़े तो उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्हें अकल्पनीय खुशी का अहसास हुआ. वे वहां के सौंदर्य को देखकर स्तब्ध रह गये और अपना टेंट वही गाड़ लिया. वहां से लौटने के बाद उन्हें इस घाटी की सुंदरता 1937 में दोबारा से यहां खींच आई. यहां पहुंचकर उन्होंने गहन रिसर्च किया और लगभग 300 किस्म के फूलों की प्रजातियों को ढूंढ निकाला.

इसके बाद, उन्होंने ‘वैली ऑफ फ्लावर्स’ नामक पुस्तक लिखी. इसी के बाद फूलों से लदी यह घाटी दुनिया के सामने आई. फूलों की घाटी में छोटे-छोटे नालों के किनारे पूल इस तरह उगे रहते हैं मानो उन्हें क्यारियों में उगाया गया हो, प्रकृति की इस तिलस्मी रचना को देखकर ही शायद यहां के सीधे-सादे ग्रामीण इसे पारलौकिक एवं परियों के संसार की संज्ञा देते हैं. भारतीय धार्मिक मान्यता के अनुसार किंवदंती है कि रामायण काल में हनुमानजी संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पधारे थे.

बेहतर मौसम :

87.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली यह घाटी नवम्बर-दिसम्बर से अप्रैल-मई तक बर्फ से पूरी तरह ढकी रहती है. जून में जब बर्फ पिघलने की शुरुआत होती है तो यह क्षेत्र हरियाली की चादर ओढ़ लेती है. जुलाई तक यहां के पौधों में फूल महकने लग जाते हैं. अगस्त में फूलों की घाटी सबसे सुंदर नजर आती है क्योंकि इस दौरान फूल पूरी तरह खिल चुके होते हैं लेकिन अक्टूबर से फूल धीरे-धीरे मुरझाने शुरू हो जाते हैं.

नंदा देवी पार्क

नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क हिमालय के सबसे शानदार वन क्षेत्रों में से एक है. यह नंदा देवी की चोटी पर स्थित है जिसकी ऊंचाई 7,800 मी. है. नंदा देवी पर्वत भारत की दूसरी और वि की 23वीं सबसे ऊंची चोटी है. इस पार्क में रहने की व्यवस्था नहीं है. यही वजह है कि लोगों की कम पहुंच के कारण यह पार्क जैसा था, उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है.

यह कई दुर्लभ और लुप्तप्राय स्तनधारियों का प्राकृतिक आवास भी है. पार्क गढ़वाल के चमोली जिले में पड़ता है जो पूर्व में गौरीगंगा तथा पश्चिम में ऋषि गंगा घाटियों के बीच स्थित है. नंदा देवी के शिखर के आसपास का क्षेत्र अप्रतिम सौंदर्य से भरापूरा है. 6 नवम्बर 1982 में इसे ‘राष्ट्रीय पार्क’ घोषित किया गया.



 

 



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