जमींदोज हो सकता है 'रनगढ़' किला, दरकने लगी हैं दीवारें
बुंदेलखण्ड क्षेत्र में केन नदी की जलधारा के बीचोंबीच बने 18वीं सदी के देश के एकमात्र जलीय दुर्ग 'रनगढ़' पर खनन माफियाओं की निगाहें हैं.
|
यहां पिछले साल हुए बालू खनन से दुर्ग की चट्टानें खुल गई हैं और अब दीवारें दरकने लगी हैं.
अगर माफियाओं पर कानूनी शिकंजा न कसा गया तो यह दुर्लभ किला कभी भी जमींदोज हो सकता है.
आमतौर पर रजवाड़ों के किले पहाड़ों पर ही बने होते हैं, लेकिन बुंदेलखण्ड के बांदा में गौर-शिवपुर गांव के पास यह किला 'रनगढ़' उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में बंटी केन नदी की जलधारा में अब भी मौजूद है, जो अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं है.
इस किले के निर्माण से सम्बंधित कोई अभिलेखीय साक्ष्य तो नहीं मिलते, पर इतिहासकार राधाकृष्ण बुंदेली बताते हैं, "18वीं सदी में चरखारी नरेश ने रिसौरा रियासत की रखवाली के लिए सैनिक सुरक्षा चौकी के रूप में इसका निर्माण कराया था, जो बाद में पन्ना नरेश महाराजा छत्रसाल के आधिपत्य में चला गया था."
करीब चार एकड़ क्षेत्रफल में बना यह दुर्लभ किला केन नदी के बीच चट्टानों में काफी ऊंचाई पर बना है. तीन साल पूर्व इसी किले के पास की जलधारा से अष्टधातु की एक भारी भरकम तोप बरामद हुई थी, जिसे मध्य प्रदेश शासन की गौरिहार पुलिस ने अपने क्षेत्र की जलधारा में होने का दावा जताकर अपने पास रख लिया था. तोप को बाद में खजुराहो में रखा गया.
बांदा के गौर-शिवपुर गांव निवासी सिद्दीक खां बताता है, "कई साल पहले पनगरा गांव के दबंग किले का मुख्य दरवाजा उखाड़ कर ले गए, जो सराय नामक हवेली में लगा है."
उन्होंने बताया, "अब तक यह किला अपनी मजबूती के बल पर टिका रहा, पिछले साल कुछ खनन माफिया किले के चारों ओर की बालू की पोकलैंड मशीन के जरिये खुदाई कर उसे बेचने के लिए ले गए. इसके परिणामस्वरूप चट्टानें खुल गईं और दीवारों का दरकना शुरू हो गया."
किले के अंदर कई तहखाने व एक कुएं के अलावा भगवान शिव का मंदिर भी बना है, जिससे साबित होता कि इस राज्य का राजा शिवभक्त रहा होगा. किले को चोरों ने भी नहीं बख्शा. धन के लालच में कई जगह सब्बल और कुदाल से खुदाई किए जाने के निशान मौजूद हैं.
स्थानीय पत्रकार नरेंद्र तिवारी बताते हैं, "तोप मिलने के बाद बांदा प्रशासन हरकत में आया था और तत्कालीन आयुक्त ने पूरे सरकारी अमले के साथ पिकनिक मनाने के तौर पर यहां आमद दर्ज कराई थी. तब लगा था कि किले का संरक्षण व उद्धार होगा, लेकिन केवल सीढ़ियों के निर्माण के अलावा कुछ नहीं हुआ."
पनगरा गांव के बलराम दीक्षित बताते हैं, "चरखारी रियासत से रानी नाराज होकर रिसौरा रियासत आ गई थीं, और उन्होंने इस किले में काफी दिन गुजारे थे, तभी किले का नाम 'रानीगढ़' हुआ और अब रानीगढ़ का अपभ्रंश 'रनगढ़' हो गया है."
बांदा जनपद के नरैनी परगना के उपजिला अधिकारी एस. राजलिंगम ने बताया, "केन की जलधारा बंटी होने से 'रनगढ़' किले का आधा हिस्सा उत्तर प्रदेश के बांदा व आधा मध्य प्रदेश के छतरपुर प्रशासन के अधीन है, इसी वजह से रखरखाव में अड़चनें पैदा हो रही हैं. हालांकि यह दुर्लभ किला भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग के दस्तावेजों में दर्ज है."
बांदा के भूतत्व एवं खनिज अधिकारी कमलेश राय का कहना है, "पिछले वर्ष मध्य प्रदेश शासन की अनुमति पर कुछ लोगों ने बालू का खनन किया था."
वैसे छतरपुर के खनिज अधिकारी प्रकाश वर्मा इस बात का खंडन करते हैं.
उन्होंने कहा, "मध्य प्रदेश शासन की ओर से किले के आस-पास अब तक बालू खनन की अनुमति ही नहीं दी गई है, यहां बांदा के खनन माफिया चोरी-छिपे अवैध खनन करते हैं."
ग्रामीणों का कहना है कि अगर पुरातत्व विभाग की अनदेखी व खनन माफियाओं की हरकत बरकरार रही तो बुंदेलखण्ड का यह दुर्लभ किला जल्दी ही जमींदोज हो जाएगा.
Tweet |