विदेशी के साथ देशी पर्यटकों की नजरों में भी चढ़ा राजस्थान

Last Updated 22 Jan 2012 02:05:35 PM IST

राजस्थान की सतरंगी संस्कृति, यहां के प्राचीन भव्य किले और हवेलियां विदेशी ही नहीं अब देशी पर्यटकों को भी सम्मोहित कर रहे हैं.


उत्तराचंल से आये रवि कुमार ने गुलाबी नगरी की बसावट औेर हवामहल समेत अन्य दर्शनीय स्थलों को देखने के बाद कहा, ‘‘हालांकि हर साल लाखों पर्यटक उत्तराचंल के प्राकृतिक दृश्यों को देखने वहां जाते हैं, लेकिन राजस्थान की सतरंगी संस्कृति की बहुरंगी आभा तथा स्थापत्य एवं शिल्प बरबस मुझे राजस्थान खींच लाती है.’’

पर्यटन विभाग के सूत्रों के अनुसार हिन्दुस्तान आने वाले पर्यटकों में से साठ फीसदी पर्यटक राजस्थान आते हैं. विदेशी पर्यटक मरूभूमि की सांस्कृतिक विरासत का अकूत खजाना देखकर अभिभूत हो जाते हैं.

राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष रणदीप धनकड का कहना है कि राजस्थान सरकार देशी विदेशी पर्यटकों की सुविधाओं और उनकी सुरक्षा पर विशेष ध्यान दे रही है.

उन्होंने कहा कि पर्यटन विकास निगम अपने होटलों में पर्यटकों की सुविधा का भरपूर ख्याल रख रहा है.

महाराष्ट्र से आये ए रामास्वामी ने कहा, ‘‘आजकल सर्दी अधिक होने की वजह से कुछ दिक्कत हो रही है लेकिन राजस्थान के किले और जयपुर के हवामहल, जयगढ़ और सिटी पैलेस देखकर सर्दी दूर हो गई.’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम समुद्र के निकट रहते हैं लेकिन आप लोग रेत के समुद्र के पास रहते है. राजस्थान के स्थापत्य एवं शिल्प के सम्मोहन ने हमें ऐसा बांधा है कि अब हम राजस्थान हर साल आयेंगे.’’

धनकड का कहना है, ‘‘हम देशी पर्यटकों को ध्यान में रखते हुए होटल के किराये में समय-समय पर रियायत दे रहे हैं. आने वाले समय में पर्यटकों को और रियायतें देने पर विचार किया जा रहा है. हम चाहते हैं कि राजस्थान आने वाला पर्यटक बार-बार यहां आयें और राजस्थान की मेजबानी तथा आदर सत्कार का आंनद उठाये.’’

पर्यटकों का कहना है कि राजस्थान की विशिष्ट स्थापत्य कला से सजी हवेलियां, हवेलियों में बने इन्द्रधनुषी चित्ताकर्षक भित्तिचित्र, अरावली पर्वत श्रृंखला औेर किले बावड़िया देखना अच्छा लगा.

राजस्थान में एक ओर रेगिस्तान है दूसरी ओर वन्य जीव और कलरव करते पक्षी. सवाई माधोपुर और अलवर में बाघ के नजारे करीब से देखने को मिलते हैं.

राजस्थान गाइड एसोसिएशन के पदाधिकारी सुरेन्द्र सिंह के अनुसार, पर्यटक अब राजस्थान की लोक संस्कृति के परिचायक तीज त्यौहार तथा उमंग और उल्लास के प्रतीक मेले देखने भी आने लगा है. यही कारण है कि एक समय राजस्थान में केवल सर्दी के दौरान ही पर्यटकों की आवाजाही रहती थी लेकिन अब बारह महीने, केवल परीक्षाओें को छोड़कर पर्यटक राजस्थान आ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि राजस्थान में पर्यटकों को घूमर की चितचोर अदायें तो कहीं फागुन की मस्ती में चंग की थाप पर थिरकते पांव, चकरी और भवाई नृत्य के रोमांचक करतब तो कहीं गैर और गींदड नृत्य की गमक, विद्युत की गति सा तेराताली और कालबेलिया नृत्य तो कहीं नट और बहुरुपिया कला का कमाल देखने को मिलता है.



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