अमृत, पारस और कल्पवृक्ष

Last Updated 24 Apr 2014 12:26:27 AM IST

अमृत, पारस और कल्पवृक्ष यह तीनों महान तत्व सर्वसाधारण के लिए सुलभ हैं.


धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

हम जितना उनसे दूर रहते हैं, उतने ही ये हमारे लिए दुर्लभ हैं परन्तु जब हम इनकी ओर कदम बढ़ाते हैं तो यह अपने बिल्कुल पास, अत्यन्त निकट आ जाते हैं. जिस ओर मुंह न हो, उधर की चीजों का कोई अस्तित्व दृष्टिगोचर नहीं होता.

पीठ पीछे क्या वस्तु रखी हुई है,  इसका पता नहीं चलता, किन्तु जैसे ही हम उस ओर मुंह फेरते हैं, पीछे की चीज जो कुछ क्षण पहले तक अदृश्य थी, दिखाई देने लगती है. सच्ची चाहना की कसौटी यह है कि अभीष्ट वस्तु को प्राप्त करने की लगन अन्त:करण की गहराई तक समाई हुई हो.

विश्व में कोई वस्तु ऐसी नहीं है कि मनुष्य सच्चे मन से इच्छा करने पर उसे प्राप्त न कर सके. लोभवश अनावश्यक वस्तुओं के संचय की लालसा में प्रकृति के नियम कुछ बाधक भले बनें, परन्तु आत्मिक सद्गुणों के विकास द्वारा सात्विक आनन्द प्राप्त करने की आकांक्षा तो सर्वथा उचित और आवश्यक होने के कारण पूर्णतया सरल है. उसकी पूर्ति में ईश्वरीय सहायता मिलती है. आत्म-कल्याण करने वाले सत्प्रयासों में भगवान सदा सहयोग देते हैं.

अमृत, पारस और कल्पवृक्ष मनुष्य के लिए पूर्णतया सुलभ हैं बशत्रे उन्हें प्राप्त करने का सच्चे मन से प्रयत्न किया जाए. अपने अविनाशी होने का दृढ़ विश्वास चिन्तन और मनन द्वारा अन्त: चेतना में भली प्रकार बिठाया जा सकता है. महा जीवन की लाभ-हानि को प्रधानता देने की नीति के आधार पर जीवन की गुत्थियों को सुलझाना चाहिए, उसी के अनुसार कार्यक्रम बनाना चाहिए.

जब इस प्रकार का हमारा दृष्टिकोण निश्चित हो जाता है तो जीवन अत्यन्त पवित्र, निर्मल, निष्पाप, शान्तिदायक एवं आनन्दमय हो जाता है. यही अमृत है. प्रेम की दृष्टि से सबको देखना, आत्मीयता, उदारता, सहानुभूति, सेवा, क्षमा, दया, सुधार, कल्याण, परमार्थ, त्याग भाव रखकर लोगों से व्यवहार करना ऐसा उत्तम कार्य है, जिसकी प्रतिक्रिया उत्तम होती है. व्यक्ति आज्ञाकारी, प्रशंसक, सहायक और सेवक बन जाता है.

प्रेम मनुष्य जीवन का पारस है, इसका स्पर्श होते ही नीरस, शुष्क, तुच्छ व्यक्तियों में भी महानता उद्भूत होने लगती है. रोती दुनिया को हंसती सूरत में बदलने का जादू प्रेम में ही है. इसीलिए उसे पारस कहते हैं.  तप से सारी सम्पदाएं मिलती हैं. शक्ति संचय, परिश्रम, उत्साह, दृढ़ता, लगन यही तप के लक्षण हैं. जिसे तप की आदत है, कल्पवृक्ष उसकी मुट्ठी में हैं, उसकी कोई इच्छा अधूरी न रहेगी, वह जो चाहेगा, वही प्राप्त कर लेगा.

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार



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