केवल ज्ञान की बात करो

Last Updated 23 Apr 2014 12:47:19 AM IST

केवल ज्ञान की बातें करो. किसी व्यक्ति के बारे में दूसरे व्यक्ति से सुनी बातें या विचार, मत दोहराओ. जैसे, कोई कहे कि अमुक व्यक्ति तुम्हारे विषय में ऐसा कह रहा था, उसे वहीं रोक दो.


धर्माचार्य श्री श्री रविशंकर

उस पर विश्वास भी मत करो. जब कोई तुम पर सीधे आरोप लगाये तो यह जान लो कि वह तुम्हारे बुरे कर्मों को ले रहा है. उस पर ध्यान मत दो. उस पर विश्वास मत करो और यदि तुम गुरु के निकटतम में से एक हो, तो संसार के सारे आरोपों को हंसते हुए ले लोगे.

द्वन्द्व संसार का स्वभाव है. शांति आत्मा का स्वभाव है. द्वन्द के बीच शांति को खोजो. जब शान्ति से जन ऊबने लगे, सांसारिक क्रीड़ाओं से जुड़ जाओ. फिर जब इनसे थक जाओ, आत्मा की शान्ति में आ जाओ. यदि तुम गुरु के करीब हो, तो दोनों साथ-साथ करोगे. द्वन्द्व समाप्त करने की चेष्टा द्वन्द्व को और बढ़ाती है.

आत्मा की शरण में आकर विरोध के साथ रहो. ईश्वर व्यापक हैं और अनन्त काल से सभी विरोधों को संभालते आये हैं. यदि ईश्वर सारे विरोधों को ले सकते हैं, तो तुम भी ऐसा कर सकते हो. जैसे ही तुम विरोध के साथ रहना स्वीकार कर लेते हो, विरोध समाप्त हो जाता है.

शान्ति चाहने वाले लोग लड़ना नहीं चाहते और लड़ने वालों के पास शान्ति है नहीं. शान्ति चाहने वाले लड़ाई से भाग जाना चाहते हैं. आवश्यक है आत्मा के सुकून में रहते द्वंद्व का सामना करो. गीता की यही मूल शिक्षा है कि शान्त मन से युद्ध करो. संसार में जैसे ही तुम एक विरोध समाप्त करते हो, दूसरा खड़ा हो जाता है.

एक समस्या हल होती है, दूसरी खड़ी हो जाती है. जैसे ही जुकाम से छुटकारा मिला, पीठ का दर्द शुरू हो गया. जब शरीर स्वस्थ हो जाता है, मन की बीमारी शुरू हो जाती है. संसार ऐसे ही चलता है. न चाहने पर भी कभी-कभी गलतफहमी हो जाती है. इन्हें सुलझाना तुम्हारा काम नहीं है. इसमें मत उलझो और अपना जीवन जिओ.

संपादित अंश ‘सच्चे साधक के लिए एक अंतरंग वार्ता’ से साभार



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