अजर-अमर भगवान
हमें कृष्ण की वृद्धावस्था का कोई चित्र नहीं दिखता, क्योंकि वे कभी भी हमारे समान वृद्ध नहीं होते.
धर्माचार्य स्वामी प्रभुपाद |
यद्यपि वे भूत, वर्तमान तथा भविष्य- तीनों काल में सबसे वयोवृद्ध पुरुष हैं. न तो उनका शरीर और न ही बुद्धि कभी क्षीण होती या बदलती है. अत: यह स्पष्ट है कि इस जगत में रहते हुए भी वे उसी अजन्मा सच्चिदानन्द रूप वाले हैं, जिनके दिव्य शरीर तथा बुद्धि में कोई परिवर्तन नहीं होता. वस्तुत: उनका आविर्भाव और तिरोभाव सूर्य के उदय तथा अस्त के समान है जो हमारे सामने घूमता हुआ हमारी दृष्टि से ओझल हो जाता है.
जब सूर्य हमारी दृष्टि से ओझल रहता है तो हम सोचते हैं कि सूर्य अस्त हो गया है और जब वह हमारे समक्ष होता है तो हम सोचते हैं कि वह क्षितिज में है. वस्तुत: सूर्य स्थिर है, किन्तु अपनी अपूर्ण एवं त्रुटिपूर्ण इन्द्रियों के कारण हम सूर्य को उदय और अस्त होते परिकल्पित करते हैं. और चूंकि भगवान का प्राकटय़ तथा तिरोधान सामान्य जीव से भिन्न है, अत: स्पष्ट है कि वे शात हैं, अपनी अन्तरंगा शक्ति के कारण आनन्दस्वरूप हैं और इस भौतिक प्रकृति द्वारा कभी कलुषित नहीं होते.
वेदों द्वारा भी पुष्टि की जाती है कि भगवान अजन्मा होकर भी अनेक रूपों में अवतरित होते रहते हैं. वैदिक साहित्यों से भी पुष्टि होती है कि भगवान जन्म लेते प्रतीत होते हैं, तो भी वे शरीर-परिवर्तन नहीं करते. श्रीमद्भागवत में वे माता के समक्ष नारायण रूप में चार भुजाओं तथा षड् ऐश्र्वयों से युक्त होकर प्रकट होते हैं. उनका आद्य शात रूप में प्राकटय़ उनकी अहैतुकी कृपा है जो जीवों को प्रदान की जाती है ताकि वे भगवान के यथारूप में ध्यान केन्द्रित कर सकें.
भगवान अपने समस्त पूर्व आविर्भाव-तिरोभावों से अवगत रहते हैं, किन्तु सामान्य जीव को जैसे ही नया शरीर प्राप्त होता है, वह पूर्व शरीर के विषय में सब कुछ भूल जाता है. भगवान परम सत्य रूप है. उनके स्वरूप तथा आत्मा या गुण तथा शरीर में अन्तर नहीं होता.
(प्रवचन के संपादित अंश श्रीमद्भगवद्गीता से साभार)
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