संगठित होकर पार करें संसार-नदी

Last Updated 17 Apr 2014 12:25:22 AM IST

यजुर्वेद में कहा गया है ‘दु:ख स्वरूप पत्थरों वाली यह संसार नदी बह रही है. हे मनुष्यों! परस्पर एकमत होकर एक साथ प्रयत्न करो.


धर्माचार्य पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

उठो! इसे सावधान होकर अच्छी तरह पार करो. जो अमंगलकारी हैं, उन्हें यहीं छोड़ दो. कल्याणकारी बातों को, पदार्थों (ज्ञान) को लक्ष्य बनाकर उसे भली प्रकार तर जाओ.’ उक्त वेद मंत्र में संसार रूपी नदी की विषमता, कठिनाई आदि का वर्णन करते हुए मानव को संगठनबद्ध होकर उसे पार करने की प्रेरणा दी गई है. साथ ही विपरीत एवं दूषित तत्वों को छोड़कर कल्याणकारी एवं हितकर तत्वों को अपनाकर आगे बढ़ने का  आदेश दिया गया है.

यह संसार नदी की तरह बह रहा है. जिसमें कठिनाइयां, दु:ख, परिस्थितियां कुयोग आदि भी पत्थर रूप में बह रहे हैं. जो भी प्राणी इस संसार रूपी नदी में उतरेगा, उसे उक्त पत्थरों का सामना करना पड़ेगा. इन  कठिनाइयों, दु:खों, परेशानियों आदि पत्थरों के प्रवाह का सामना सभी को करना पड़ता है. हर मनुष्य को जीवन में इनके थपेड़े सहने ही पड़ते हैं. उनमें बहुत कम होते हैं, जो इन्हें सहन कर संसार रूपी नदी के तीव्र प्रवाह में लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं. बहुसंख्यक अपना जीवन उक्त पत्थरों के प्रवाह में छोड़ देते हैं.

इन लोगों का एकाकी प्रयत्न इतना सबल और ठोस नहीं होता कि संसाररूपी नदी पार कर सकें. इसी समस्या का समाधान करते हुए वेद भगवान आज्ञा देते हैं कि ‘हे मनुष्यों! एकमत होकर एक साथ उद्योग करो, उठो, संभलो और इस नदी को अच्छी तरह पार करो. इस संसाररूपी नदी को पार करने के लिए संगठन की शक्ति निश्चय ही महत्वपूर्ण है. परस्पर विरोधी विचारों में संगठन असंभव है. इसीलिए वे पहले एक विचार वाला बनने पर जोर देते हैं.

सामूहिक प्रयत्न भी यदि सुस्ती या आलस्यपूर्ण हों तो सफलता मिलना तो दूर, उल्टी अधिक हानि हो जाती है. अत: हर व्यक्ति को सचेत होकर विपरीत तत्वों से संरक्षण प्राप्त करने एवं उनकी हानि से बचने के लिए संगठनबद्ध होकर प्रयत्न करना चाहिए. परस्पर सहयोग, सहायता, सहिष्णुता, उपकार भावना, आत्मीयता आदि एक-दूसरे को दु:खों, कठिनाइयों एवं परेशानियों से बचाने के लिए आवश्यक है. सभी एकमत हों, संगठित हो और सावधानी से आगे बढ़ने के प्रयत्न हों तो मनुष्य इस संसार नदी को सफलता पूर्वक पार कर सकता है. इसीलिए वेद भगवान आज्ञा देते हैं कि ‘जो अमंगलकारी हैं, उन्हे यहीं छोड़ दें और कल्याणकारी तत्वों को आधार बनाकर उत्तमता से जाएं.’

गायत्री तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार



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