ईश्वर से जुड़े बिना जीवन अधूरा

Last Updated 30 Jun 2012 05:23:49 PM IST

धर्म, दर्शन, साधना, रीति रिवाज-सभी का उद्देश्य है-ईश्वर से जुड़ना. ईश्वर से जुड़े बिना जीवन अधूरा है.


परिपक्व मन और खिला दिल ही सहज रूप से इसके लिए जरूरी है. युगों से संतों, दर्शनशास्त्रियों ने जन्म लिया है, तर्क-वितर्क हुए, संगीत, कला और साहित्य इस योग की आवश्यकता के लिए उत्पन्न हुए.

धर्म, दर्शन, साधना, रीति रिवाज-सभी का उद्देश्य है-ईश्वर से जुड़ना. सामान्य व्यक्ति जब भी पीड़ा और दुख में आता है, वह इनसे मुक्त होना चाहता है. वह परम शक्ति को देखता है कि वह उसे इन पीड़ाओं से मुक्त कर दे और दुनिया की जकड़ से भी. जितना अधिक वह पीड़ा और दुख में उसे देखता है, वह स्वयं को ईश्वर से और अधिक दूर अनुभव करता है. यह उसका सहज स्वभाव है.

उसका दिल उस तरफ से किसी प्रत्युत्तर का इंतजार करता है. अज्ञात समय से ही मनुष्य स्वयं और ईश्वर के मध्य इस अंतर को कम करने में लगा हुआ है. इसके दो तरीके हैं- एक तो मनुष्यता को ऊपर की ओर उठाकर ईश्वर के पास ले जाया जाये. इसे सिद्धता कहते हैं. दूसरा ईश्वर को नीचे मनुष्य के स्तर पर लाया जाये. इसे अवतार कहते हैं.

ईश्वर अवतार

ईश्वर अवतार के रूप में स्वयं के लिए नहीं वरन जनकल्याण के लिए आते हैं. यही वह मनुष्यता है जिसमें आप दिव्यता की झलक देख सकते हैं. पुराणों में देवताओं को मनुष्य की भावना और प्रवृत्तियुक्त बताया गया है. वे सामान्य कार्य करते हैं. राम और कृष्ण उन सभी अनुभवों से गुजरे जो आपको बताते हैं कि भगवान आप से अलग नहीं है.

ईश्वर का मनुष्य के प्रति प्रेम समझने का सबसे उपयुक्त माध्यम है, वह है अवतार. अवतार की अवधारणा पूर्व के देशों में ही है - भारत, चीन, जापान, कोरिया, नेपाल आदि. नृपो नारायणो हरि. राजा को विष्णु का अवतार बताया गया है; वैद्यो नारायणो हरि. चिकित्सकों को भी विष्णु का अवतार बताया गया है. पश्चिमी देशों में इसे संदेशवाहक के रूप में बताया जाता है. लेकिन पूर्व में इस मत को नही माना क्योंकि इस मत से ईश्वर का प्रेम स्पष्ट नहीं हो पाता है.

आपके लिए ईश्वर का प्रेम

पूर्व ने दिल की भावना को महत्व दिया है जबकि बुद्धि ने इसे एक संदेशवाहक के रूप में माना है. जब आपको यह पता चलता है कि ईश्वर का प्रेम आपके लिए है तो आपका प्रेम ईश्वर के प्रति और दृढ़ हो जाता है. अब तक 24 अवतारों ने जन्म लिया है और भविष्य में और अवतार आएंगे. पुराणों में कल्कि को भविष्य का अवतार माना गया है.

कहा जाता है कि यह अवतार घोड़े पर बैठ कर आएगा. अवतार चमत्कृत करने के लिए नहीं, अपितु शांत करने के लिए है. अपने स्रोत की ओर ले जाने के लिए है. एक बार इसे पहचान लें तो समस्त रचना उस सर्वशक्तिमान से भरी हुई ज्ञात होने लगती है. ईश्वर का अर्थ है आपको अनुभव हो जाए कि यहां कोई ऊपर नहीं, कोई नीचे नहीं, कोई आगे नहीं, कोई पीछे नहीं. यहां पर कोई दो नहीं है.
 



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