सच्ची मुक्ति
दो प्रकार के मन होते हैं-एक तो खुला मन और एक बंद मन.
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बंद मन वह है जो कहता है, 'यह ऐसा ही होता है. मुझे मालूम है." खुला मन कहता है-'हो सकता है. शायद मुझे मालूम न हो." सारी समस्याएं जानने से उठती हैं. जब भी तुम्हें लगता है कि तुम परिस्थिति को समझ रहे हो और उस पर लेबल लगाते हो, यही तुम्हारी समस्या की शुरु आत है. जब भी तुम्हें लगे कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है तो यह 'ऐसा ही होता है" की श्रेणी में आते हैं. यह सीमित ज्ञान की उपज है लेकिन जब तुम में विस्मय, धीरज, आनंद हो; तब तुम 'मुझे नहीं पता, ऐसा हो सकता है", की स्थिति में हो.
सारा जीवन उस सीमित 'मुझे मालूम है" से सभी तरह ही संभावनाओं तक का स्थानांतरण है. तुम्हें लगता है तुम्हें इस संसार के बारे में सब मालूम है और यही सब से बड़ी समस्या है. यही एक जगत नहीं है. इस जगत की कई परतें हैं. जब तुम परेशान होते हो, तब जैसे कोई डोर तुम्हें खींच रही होती है. जब कोई घटना घटती है, तब उस घटना के उस तरह होने की कई संभावनाएं हो सकतीं हैं. न केवल ठोस स्तर पर लेकिन किसी कारणवश सूक्ष्म स्तर पर भी. मानो तुम अपने कमरे में दाखिल हुए. पाया कि किसी ने सारा कमरा तितर-बितर कर डाला है. तुम उस व्यक्ति के प्रति क्रोध से जोड़ देते हो लेकिन सूक्ष्म स्तर पर कुछ और भी हो रहा है.
सीमित ज्ञान के कारण ऐसा होता है. इसका अनुभव करने के बाद भी तुम उसके परे कुछ देख नहीं पाते. एक कहावत है, कुएं में गिरे दिन में और देखा रात में. इसका अर्थ है, तुम्हारी आंखें खुली नहीं हैं. आसपास उसे देखने और पहचानने के लिए तुम पर्याप्त रूप से संवेदनशील नहीं हो. जब तक हम घटनाओं और भावनाओं को व्यक्तियों के साथ जोड़ेंगे, ये चक्र चलता रहेगा. तुम उससे कभी मुक्त नहीं हो पाओगे. तो सबसे पहले उस घटना और भावना को उस व्यक्ति, उस स्थान और उस समय से अलग कर दो. ब्राह्माण्ड की एकात्मकता के ज्ञान को जानो. यदि तुम्हारे हाथ पर एक पिन चुभे तो सारे शरीर को महसूस होता है. इसी प्रकार, हर शरीर सृष्टि से, हरेक से जुड़ा है क्योंकि सूक्ष्म स्तर पर केवल एक जीवन है. यद्यपि ठोस स्तर पर ये भिन्न दिखाई पड़ते हैं.
अस्तित्व एक है. दैवत्व एक है. जब तुम चेतना की निश्चितता जान जाते हो, तब तुम जगत की अनश्चितता से निश्चिंत रह सकते हो. प्राय: लोग इससे ठीक विरुद्ध करते हैं. वे अविश्वसनीय पर विश्वास करते हैं और व्यग्र हो जाते हैं. संसार परिवर्तन है, और आत्मा अपरिवर्तनशील है. तुम्हें अपरिवर्तनशील पर विश्वास और परिवर्तन का स्वीकार करना है. यदि तुम निश्चित हो कि सब कुछ अनिश्चित है, तो तुम मुक्त हो. जब तुम अज्ञान में अनिश्चित हो, तुम चिंतित और तनावपूर्ण हो जाते हो. जागरूकतासहित अनिश्चितता उच्च स्तर का चैतन्य और मुस्कान देते हैं. अनश्चितता में कार्य करना जीवन को एक खेल, एक चुनौती बना देता है. अक्सर लोग सोचते हैं, निश्चितता मुक्ति है. जब तुम निश्चित न हो, तब यदि तुम्हें मुक्ति लगे, तभी वह सच्ची मुक्ति है.
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