सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा

Last Updated 09 Apr 2011 11:41:02 PM IST

मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को 'कालरात्रि' कहा जाता है और सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है.


मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक होता है, लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं, इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है.

ये अपने महाविनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करती हैं. विनाशिका होने के कारण इनका नाम कालरात्रि पड़ा.

आकृति और सांसारिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानि काले रंग-रूप वाली, अपने विशाल केशों को फैलाकर रखने वाली और चार भुजाओं वाली दुर्गा हैं.

यह वर्ण और वेश में अर्द्धनारीश्वर शिव की तांडव मुद्रा में नज़र आती हैं.

दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है. इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है. इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है.

सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है. उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है.

उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है. उसे अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है.

इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है. सिर के बाल बिखरे हुए हैं.

गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है. इनके तीन नेत्र हैं. ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं.

माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं. इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है.

ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं. दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है.

बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है.

मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं. दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं.

ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं. इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते. इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है.

माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए. यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए.

मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए. वे शुभंकारी देवी हैं. उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती. हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए.

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है. माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए.

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता: नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

इस श्लोक का अर्थ है: हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है. या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ. हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान करें.

उपासना मंत्र

एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता.

लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी..

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा.

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी..



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