जानिए क्या है चिकनगुनिया का इतिहास
राजधानी में इस वर्ष चिकनगुनिया का प्रकोप जोरों पर है. चिकनगुनिया बीमारी को अफ्रीकन भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब होता है 'वो जो झुका दे.'
चिकनगुनिया का इतिहास (फाइल फोटो) |
चिकनगुनिया एक वायरल बुखार है. एडीज एजिप्टी नाम के मच्छर, जिसको पीले बुखार का मच्छर भी कहते हैं, के काटने से ये वायरस हमारे शरीर में घुस जाता है.
चिकनगुनिया बीमारी को अफ्रीकन भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब होता है “वो जो झुका दे”. ये नाम इसलिए पड़ा क्योंकि जोड़ों में अधिक दर्द की वजह से चिकनगुनिया के मरीज झुक कर चलने लगते हैं और यह दर्द काफी लम्बे समय तक रहता है, जिसे पूरी तरह से स्वस्थ होने में महीनों का समय लग जाता है.
चिकनगुनिया बीमारी अक्सर गरम देशों में पायी जाती है, अधिकतर एशिया और अफ्रीका के देशों में ये बीमारी होती रही है. पिछले कुछ सालों में चिकनगुनिया बुखार यूरोप के कुछ देशों में भी पाया गया है. इस रोग को पहली बार मेरोन रोबिंसन तथा लुम्स्डेन ने वर्णित किया था. सबसे पहले चिकनगुनिया की शुरुआत 1952 में अफ्रीका में तंज़ानिया और मोजाम्बिक के आस पास हुई थी.
एक अच्छी बात ये है की चिकनगुनिया एक बार हो जाने पर जीवन में दुबारा होने की संभावना लगभग ना के बराबर होती है और मरीज को जीवन भर के लिए इस रोग से मुक्ति मिल जाती है.
आमतौर पर पीला ज्वर उष्ण कटिबंधों में पाया जाता है, इसलिए चिकनगुनिया के अधिकतर मामले भी उष्णकटिबंधीय एशियाई देशों में ही देखे जाते हैं. चिकनगुनिया बीमारी सीधे एक मनुष्य से दुसरे मनुष्य में नहीं फैलती लेकिन एक बीमार व्यक्ति को एडीज मच्छर के काटने के बाद फिर स्वस्थ व्यक्ति को काटने से फैलती है.
जब चिकनगुनिया का वायरस मनुष्यों के शरीर में प्रवेश करता है, तो मनुष्य बुखार, खांसी, जुकाम, बदन में दर्द और जोड़ों में दर्द से पीड़ित हो जाता है.
यह वायरस उसी प्रकार की बीमारी पैदा करता है, जिस प्रकार की स्थिति डेंगू रोग में होती है. वैसे मच्छर देखने में छोटा लगता है, लेकिन इसके काटने से गंभीर और खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं.
हालांकि चिकनगुनिया बुखार जानलेवा नहीं होता है. अभी कुछ समय पहले एक और प्रजाति के मच्छर से ये बुखार होने लगा है और सामान्यतः ये मच्छर दिन में ही काटता है इसलिए दिन में काटने वाले मच्छर से बचकर रहना चाहिए.
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