तिल में बीमारियों की रोकथाम की अद्भुत क्षमता
धार्मिक महत्व के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर होने के बावजूद किसान जानकारी के अभाव में तिल की व्यावसायिक खेती पर कम ध्यान देते हैं.
तिल में बीमारियों की रोकथाम की अद्भुत क्षमता. |
तिल में कुछ ऐसे गुण हैं जिनसे यह मधुमेह, ट्यूमर और अल्सर प्रतिरोधक माना जाता है. इसमें माइरिस्टिक अम्ल भी पाया जाता है जो इसे कैंसररोधी बनाता है. तिल के तेल में ट्राइग्लिसराइड्स होने की वजह से इसमें बड़ी मात्रा में लिनोलियेट पाया जाता है जो कैंसररोधी होता है.
तिल को ऊर्जा का खजाना भी कहा जाता है क्योंकि सौ ग्राम तिल से 640 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है. तिल में मिथियोनिन तथा ट्रिप्टोफेन अमीनो अम्ल भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो यकृत और गुर्दे को स्वस्थ रखने के लिये आवश्यक है. तिल में विटमिन ए, ई, बी कॉम्पलेक्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम, जिंक तथा पोटाश भी पाया जाता है.
मध्य प्रदेश के कृषि महाविद्यालय, टीकमगढ़ के वैज्ञानिक रूद्रसेन सिंह और एमपी गुप्ता ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि प्राचीनतम तिलहनी फसलों में से एक तिल स्वास्थ्यवर्धक, पाचक, शक्तिवर्धक और यौवनदायी गुणों से भरपूर है. इसका तेल प्रोटीन और काबरेहाईड्रेट का अच्छा स्रोत है. तिल में दूध से तीन गुना अधिक कैल्शियम पाया जाता है.
डा. सिंह और डा. गुप्ता का कहना है कि भारत विश्व में सबसे बड़ा तिल उत्पादक है और यहां 22 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, ओड़िशा, तमिलनाडु और गुजरात में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है.
इसका सालाना लगभग पांच लाख टन उत्पादन होता है तथा विश्व के अनेक देशों को इसका निर्यात किया जाता है. सिंचित क्षेत्रों में तिल का उत्पादन 900 से 1000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होता है जबकि वष्रा आधारित क्षेत्रों में 700 से 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक है. मध्य प्रदेश तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में इसकी जैविक खेती भी शुरू की गयी है जिसकी बाजार में अच्छी मांग है.
कुछ क्षेत्रों में किसान तिल की मिश्रित खेती भी करते हैं. तिल की खेती मूंग, सोयाबीन, उड़द, अरहर, बाजरा, ग्वार और कपास के साथ भी की जाती है. अरहर और उडद के साथ तिल की खेती करने से इस पर कीटों का प्रकोप कम होता है.
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