सरसों तेल में अब नहीं आयेगी तीखी गंध

Last Updated 23 Sep 2014 03:11:35 PM IST

भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने सरसों तेल की अनोखी झांस या उसके तेज गंध को समाप्त कर उसे रिफाइंड की तरह गंधहीन बना दिया है.


सरसों तेल में अब नहीं आयेगी तीखी गंध

जिसका मजा नारियल और मूंगफली का तेल पसंद करने वाले लोग भी ले सकते हैं.

देश में भारी मात्रा में खाद्य तेल के किये जा रहे आयात के मद्देनजर भी सरसों तेल के तेज गंध को समाप्त किया गया है ताकि दक्षिण भारत में नारियल या अन्य हिस्सों में मूंगफली या रिफाइंड को पसंद करने वाले लोगों को एक उपयुक्त विकल्प मिल सके.

नये तरह के सरसों के तेल के रंग में कोई परिवर्तन नहीं आया है और सारे गुण पहले की तरह ही हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के संयुक्त निदेशक अनुसंधान के वी प्रभू ने .यूनीवार्ता. को बताया कि इरूसिक एसिड के कारण सरसों के तेल में तेज गंध या कडवापन होता है जिसके कारण बडी संख्या में लोग इसे पसंद नहीं करते हैं.

लम्बे अनुसंधान के बाद कृषि वैज्ञानिकों ने इरूसिक एसिड बनाने वाले जीन की पहचान की और इसे सरसों से निकाल दिया.

डा प्रभू ने बताया कि मनुष्य और पौधों में 13 से 17 हजार जीन पाये जाते हैं जिनमें से 3500 जीन सक्रिय होकर काम करते हैं. इनमेंसे खास तरह के जीन की पहचान करना एक जटिल समस्या है .हालांकि वैज्ञानिक इस प्रकार की समस्याओं से जूझते ही रहते हैं.

डा प्रभू ने बताया कि प्रगतिशील किसान संतुलित तरीके से सरसों की नई किस्मों की खेती कर प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल इसकी ऊपज ले रहें हैं 1 इन किस्मों में तेल की मात्रा भी 40 प्रतिशत तक है.

डा प्रभू ने बताया कि गंधहीन सरसों की खेती के लिये आवश्यक है कि किसान जिस खेत में इसकी खेती करें उसके आसपास परम्परागत सरसों की खेती नहीं नहीं होनी चाहिये .

यदि परम्परागत सरसों की फसल उसके निकट होगी तो परागण के कारण गंधहीन सरसों का मूल स्वरूप कायम नहीं रहेगा और उसमें तीखापन आ जायेगा.

उन्होंने बताया कि नई किस्मों की सरसों के खेत के आसपास कम से कम पचास मीटर की दूरी तक सरसों की दूसरी किस्मों को नहीं होना चाहिये.

इसके अलावा व्यापारी जो गंधहीन सरसों खरीदते हैं उसे अलग रखना चाहिये 1 किसानों और व्यापारियों की लापरवाही के कारण गंधहीन सरसों भी तेज गंधवाला बन जाता है.

उन्होंने बताया कि किसान यदि नई सरसों की किस्मों को लेकर सावधानी बरतें तो उन्हें न केवल बेहतर मूल्य मिल सकता है बल्कि काफी हद तक खाद्य तेल की कमी की समस्या का समाधान भी हो सकता है.



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