WEF: दावोस में बोले मोदी- जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद के खतरे से कम गंभीर नहीं

Last Updated 23 Jan 2018 05:00:11 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्विट्जरलैंड के दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 48वीं सालाना बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व के सामने सुरक्षा, शांति और स्थिरता बड़ी चुनौतियां हैं.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मोदी ने कहा कि 1997 में पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री दावोस आए थे. उस समय कि स्थिति आज से अलग थी. उस समय ना कोई लादेन को जानता था और ना हैरी पॉटर को. उस समय ना गूगल का अवतार हुआ था और ना ही एमेजॉन सामने आया था. उस जमाने में चिड़िया ट्वीट करती थी आज मनुष्य ट्वीट करता है. तब अगर आप एमेजॉन इंटरनेट पर डालते तो नदियों और जंगलों की तस्वीर आती.

उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में तकनीक का महत्व काफी बढ़ा है, यह हमारे तौर तरीकों, राजनीति और जीवन के विभिन्न पहलुओं को गहराई से प्रभावित कर रही है:

मोदी ने कहा कि भारत में अनादि काल से हम मानव को जोड़ने में विश्वास करते आए है. उसे तोड़ने या बांटने में नहीं. ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ यानि पूरी दुनिया एक परिवार है का भारतीय दर्शन आज दुनिया में खिंची दरारों को पाटने की दृष्टि में अधिक प्रासंगिक है. चिंता का विषय है कि हमारी दूरियों ने इन चुनौतियों और भी कठिन बना दिया है. विश्व के सामने इस समय तीन प्रमुख चुनौतियां हैं पहली जलवायु परिवर्तन, दूसरी आतंकवाद और तीसरी आत्मकेंद्रित होना.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद में भी अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद में भेद करना पूरे विश्व के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. आतंकवाद को लेकर भारत के रुख से हर कोई परिचित है

पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति आगाह करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आतंकवाद के खतरे से कम गंभीर नहीं है. यह मानव सभ्यता के लिए सबसे गंभीर खतरा है जिससे निबटने के लिए सबको साथ आना पड़ेगा और प्राकृतिक संसाधनों के तर्कसंगत इस्तेमाल पर ध्यान देना होगा.

मोदी ने कहा, "आज हम प्रकृति का अपने लालच के लिए दोहन कर रहे हैं. हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या यह हमारी प्रगति है या फिर यह हमारा लालच है. समय आ गया है कि हम इस बारे में महात्मा गांधी जी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर चलें."

'प्राचीन भारतीय परंपरा में प्रकृति के साथ गहरे तालमेल का जिक्र '

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से ध्रुवीय क्षेत्रों की बर्फ तेजी से पिघल रही है. कई द्वीप डूब रहे हैं या फिर डूबने वाले हैं. अत्यधिक गर्मी या अत्यधिक ठंड जैसे मौसम का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है. कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं बाढ़ आ रही है.

जलवायु परिवर्तन से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और संधियों का पालन नहीं करने वाले देशों पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए उन्होंने सवाल किया कि आज हर कोई कहता है कि कार्बन उत्सर्जन कम होना चाहिए लेकिन ऐसे कितने देश या लोग हैं जो सही मायने में विकासशील देशों और समाजों को उपयुक्त तकनीक उपलब्ध कराने  के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराना चाहते हैं. यह एक गंभीर समस्या है जिससे निबटने के लिए सबको साथ आना ही होगा. सीमित सोच और सीमित प्रयासों से कुछ नहीं होगा. 

प्राचीन भारतीय परंपरा में प्रकृति के साथ गहरे तालमेल का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हजारों साल पहले भारतीय शास्त्रों में भूमि को माता और मनुष्य को पृथ्वी का पुत्र बताया गया है. आज भी इसी सोच को कायम रखते हुए भारत ने सौर ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रभावी कदम उठाया है. वातारण को बचाने और जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निबटने के लिए सरकार ने 2022 तक देश में 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखा है. पिछले तीन वर्षों में 60 गीगावाट यानी लक्ष्य का एक तिहाई हिस्सा हासिल किया जा चुका है. इसके साथ ही भारत ने फ्रांस के साथ मिलकर 2016 में अंतर्राष्ट्रीय सौर संगठन बनाया है जिसकी बैठक मार्च में होगी.

 

समयलाइव डेस्क/भाषा/वार्ता


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