चीन सीमा पर 11 साल में 61 में से बनीं सिर्फ 25 सड़कें
भारत सरकार ने वर्ष 2006 में चीन से लगी सीमाओं पर कुल 3409 किलोमीटर लम्बी 61 सड़कों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया था.
चीन सीमा पर 11 साल में 61 में से बनीं सिर्फ 25 सड़कें |
उन सड़कों को चिह्नित कर उनके निर्माण का काम सड़क सीमा संगठन (बीआरओ) को सुपुर्द किया था. इनके निर्माण के लिए सरकार ने 4644 करोड़ Rs धन का आवंटन भी अलग से किया था. लेकिन 2017 बीतने को है, इन 11 सालों में सिर्फ 25 सड़के ही बन पायी हैं. यानि कि आधे से भी कम काम हुआ है.
अब केन्द्र सरकार ने 2022 तक 73 सड़कों को पूरा करने का नया लक्ष्य सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को दिया है, जिसमें पहले की लक्षित सड़कें भी शामिल हैं जिन पर अब तक काम शुरू भी नहीं हो सका है. भारत में सड़कों के निर्माण की यह कछुआ गति तब है जब अरुणांचल प्रदेश, सिक्किम और लद्दाख से लगी सीमाओं पर चीन बराबर विवाद खड़ा करता रहता है और अपनी जनमुक्ति सेना (पीएलए) के माध्यम से दबाव बनाये रखता है.
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन सीमा पर इन सड़कों के निर्माण से न केवल युद्ध के समय टुकड़ियों व रसद-सामान को तेजी से अग्रिम मोचरे तक पहुंचाने में मदद मिलेगी बल्कि यह सड़कें शीतकाल में गश्त में भी काम आ सकेगी. दरअसल वर्ष 1962 में चीन ने बड़ी तेजी से भारत को जोड़ने वाली एक सड़क का निर्माण कर लिया जिससे वह जवानों और सैन्य साजोसामान सीमा तक लेकर आ सका और जिसकी परिणति पूर्वोत्तर में भारतीय सेना की हार में हुई. अब 2017 में सड़कों का अभाव ही सेना की आक्रामक और रक्षात्मक युद्ध योजनाओं में बाधा खड़ी कर रहा है. पिछले दिनों यहां आयोजित सेना की शीषर्स्थ कमांडर्स कान्फ्रेंस में भी इसको लेकर चिन्ता जाहिर की गयी और सरकार से अपनी चिंताओं से अवगत कराया गया.
सैन्य कमांडरों की कान्फ्रेंस में चीन के मुकाबले खड़े एलएसी (वास्तविक नियंतण्ररेखा) के उत्तरी व मध्य क्षेत्रों में सड़क निर्माण की गतिविधियों को खासा महत्व देने की बात सामने आयी. सेना ने चार हिमालयी दरे- लुपुलेख, थांगला 1, नीति और सांगचोकला को भी 2020 तक प्राथमिकता के आधार पर जोड़ने का फैसला किया है. इससे युद्धकाल में विभिन्न सेक्टरों के बीच टुकड़ियों व सैन्य साजोसामान की आवाजाही में मदद मिलेगी.
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