जलवायु समझौते के लिए मैराथन मंथन शुरू, बेसिक देशों ने की स्पष्ट रोडमैप की अपील

Last Updated 02 Dec 2015 04:44:17 AM IST

विश्व के नेताओं के जलवायु परिवर्तन से एकजुट होकर लड़ने का संकल्प लिये जाने के एक दिन बाद 195 देशों के वार्ताकारों ने एक ऐतिहासिक समझौते पर पहुंचने के लिए मैराथन मंथन शुरू कर दिया है.


कॉप 21 (कांफ्रेंस आफ पार्टीज) में शीर्ष भारतीय वार्ताकार एक अजय माथुर

जिसमें भारत ने विकसित देशों से कहा कि वे ‘‘न्यायोचित और ठोस’’ करार के लिए अधिक प्रगतिशील उत्सर्जन कटौती की प्रतिबद्धता जताएं.

वार्ताकारों ने मंगलवार को 54 पृष्ठ के पाठ को एक ब्लूप्रिंट की शक्ल देने की जद्दोजहद की जिसे 11 दिसंबर तक मंजूर किया जा सकता है.

इस बीच ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन की सदस्यता वाले ‘बेसिक’ देशों के समूह ने विकसित देशों से विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 2020 तक 100 अरब डॉलर मुहैया करने के लिए एक स्पष्ट रोडमैप परिभाषित करने की अपील की.

बेसिक देशों की ओर से चीन द्वारा जारी एक बयान में कोप 21 में एक पारदर्शी और पक्षकार संचालित प्रक्रिया को समर्थन करने की मांग की और कहा कि बेसिक अन्य सभी पक्षों के साथ एक न्यायोचित और संतुलित जलवायु समझौते के लिए काम करेगा.

कॉप 21 (कांफ्रेंस आफ पार्टीज) में शीर्ष भारतीय वार्ताकारों में एक अजय माथुर ने कहा कि भारत ‘‘एक न्यायोचित और ठोस’’ समझौते के लिए सभी पक्षों के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है.

उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत चाहता है कि विकसित देश उत्सर्जन कटौती पर अधिक प्रगतिशील लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता जताएं.

माथुर ने कहा, ‘‘ सही तरीके से उन लोगों के हितों को ध्यान में रखा जाए जो प्रभावित होंगे और जिनकी अभी भी सस्ती ऊर्जा तक पर्याप्त पहुंच नहीं है. हम चाहेंगे कि समझौता हमें ऐसे रास्ते पर ले जाए जहां तापमान में वृद्धि दो डिग्री से कम हो.’’

उन्होंने कहा, ‘‘ हम समय बीतने के साथ अधिक प्रगतिशील लक्ष्यों के साथ ही देशों की ओर से प्रतिबद्धता, कार्रवाई और काम चाहते हैं. हम इस समझौते को ऐसा नहंी चाहते जिसमें से लोग बाहर चले जाएं जैसा कि उन्होंने क्योटो प्रोटोकाल में किया था. जब उन्हें लगा कि वे लक्ष्यों को पूरा नहीं कर सकते तब वे इससे बाहर निकल गए थे.’’

संयुक्त राष्ट्र समझौतों के 20 वर्ष से ज्यादा समय में पहली बार पेरिस जलवायु सम्मेलन का उद्देश्य जलवायु पर कानूनी रूप से बाध्यकारी और वैश्विक समझौता करना है जिसमें वैश्विक तापमान को औद्योगिक कांति से पहले के स्तर से दो डिग्री सेल्सियस कम रखने का भी लक्ष्य है.

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगर दुनिया इस सदी के अंत तक औद्योगिक क्रांति के पूर्व के स्तर से औसतन दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म होती है तो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विनाशकारी और अपरिवर्तनीय हो जाएंगे.

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलनों में दो डिग्री सेल्सियस तापमान सीमित करने का लक्ष्य काफी समय से रहा है और वर्तमान में सभी देशों के संकल्पों से यह 2.7 डिग्री से तीन डिग्री सेल्सियस तक का अनुमान है. हालांकि प्रस्तावित समझौते में भविष्य में उत्सर्जन में कटौती को बढ़ाने का प्रावधान है.

वार्ता से पहले चीन और भारत जैसे देश अपने उत्सर्जन की कटौती की योजनाएं घोषित कर चुके हैं. यह सम्मेलन में किसी भी समझौते का केंद्रबिंदु होगा.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसी भी एकपक्षीय कदम के खिलाफ आगाह किया है जिससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक आर्थिक बाधा आ जाएगी. उन्होंने उम्मीद जताई कि विकसित देश 2020 तक हर साल कटौती और अनुकूलन के लिए 100 अरब डॉलर राशि जुटायेंगे.

मोदी ने कहा, ‘‘समान और साझी लेकिन विविध जिम्मेदारियों का सिद्धांत हमारे सामूहिक उपक्र म का आधार होना चाहिए.’’

फ्रांस की राजधानी पेरिस में हो रहे इस शिखर सम्मेलन से दो हफ्ते पहले यहां आतंकवादी हमला हुआ था, जिसमें 130 से ज्यादा लोग मारे गए थे. सम्मेलन स्थल के आसपास करीब 2800 पुलिसकर्मियों और सैनिकों को तैनात किया गया है और शहर में करीब 6000 सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है.

फ्रांस की पुलिस ने पेरिस के प्रसिद्ध चैंप्स एलिसीस एवेन्यू में और संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के स्थल के पास प्रदर्शनों पर रोक लगा दी.

पुलिस ने चेतावनी दी, ‘‘जरूरतों और परिस्थितियों को देखते हुए और भी पाबंदियां लागू की जा सकती हैं.’’

बारह दिवसीय सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में भी शुरू हुआ है जिसमें कहा गया है कि 2015 इतिहास में अब तक दर्ज सबसे गर्म साल हो सकता है.

शिखर सम्मेलन में सबसे जटिल विषयों में अमीर और गरीब देशों के बीच कार्रवाई की जिम्मेदारी को साझा करने के तौर-तरीके पर काम करना शामिल है. इसमें यह भी शामिल है कि ग्लोबल वार्मिंग के अनुकूलन की लागत कैसे जुटाई जाए और किसी अंतिम पाठ का कानूनी प्रारूप क्या होगा.

सम्मेलन में 180 से अधिक देशों ने जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हानिकारक उत्सर्जन को कम करने की अपनी योजना पेश की है.

नयी दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) ने कहा कि भारत ने कार्बन क्षेत्र के संबंध में पहली बार समान और साझी लेकिन विभिन्न जिम्मेदारियों का सिद्धांत पेश किया है और बातचीत की दिशा तय की है.

जलवायु सम्मेलन सोमवार को पेरिस में शुरू हुआ और अब तक इतनी संख्या में वैश्विक नेता कभी एकत्रित नहीं हुए थे. उम्मीद है कि इसमें 2009 में कोपेनहेगन सम्मेलन की नाकामी को नहीं दोहराया जाएगा.

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग समेत दुनिया के नेताओं ने ग्रीनहाउस गैसों पर लगाम लगाने का संकल्प लिया है.

ओबामा ने छोटे द्वीपीय देशों के प्रमुखों से मुलाकात की जिन्हें जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक खतरा है. ओबामा ने कहा कि अगर ग्लोबल वार्मिंग जारी रही तो हमें बिना इंतजार किये अपने अधिक से अधिक आर्थिक और सैन्य संसाधनों को हमारे लोगों के लिए अवसर बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि एक बदलते ग्रह के कई परिणामों के अनुकूलन के लिए लगाना होगा.

फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलोंद ने कहा, ‘‘कभी किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इतना ज्यादा दांव पर नहीं लगा है क्योंकि यह धरती के भविष्य, जीवन के भविष्य से जुड़ा है. पूरी मानवता की उम्मीद आप सबके कंधों पर है.’’ अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई पाटने के प्रयास में ओलोंद ने अफ्रीका को स्वच्छ ऊर्जा के सोतों की ओर बढ़ने में मदद के लिए अगले चार साल में दो अरब यूरो की मदद का वादा किया.

भारत, अमेरिका और चीन समेत 20 देश पहले ही अपने स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान और विकास बजट को अगले पांच साल में दोगुना करने की पहल शुरू करने का निर्णय कर चुके हैं जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों का हिस्सा होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल विकसित देशों को स्पष्ट संदेश देते हुए कहा था कि ‘कुछ की जीवनशैली’ से विकासशील देशों के अवसर नहीं छिनने चाहिए.

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि विकासशील देशों के लिए कार्बन क्षेत्र की निष्पक्ष साझेदारी की मोदी की मांग ने समान भागीदारी के क्रियान्वयन का रास्ता सुझाया है.



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