प्रतिबंधात्मक यूएनएससी की वजह से छोटे देशों की आवाजें रह जाती है अनसुनी
भारत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधात्मक और अलोकतांत्रिक प्रकृति से संयुक्त राष्ट्र निकाय में विकासशील देशों की आवाजें अनसुनी रह जाती है.
संयुक्त राष्ट्र (फाइल) |
साथ ही आगाह किया कि ऐसी स्थिति लंबे समय तक नहीं कर सकती और परिषद में जल्द सुधार होना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि दूत अशोक मुखर्जी ने कहा कि यह अफसोस की बात है कि सुरक्षा परिषद की ‘प्रतिबंधात्मक और अलोकतांत्रिक’ प्रकृति के कारण छोटे द्वीपीय विकासशील देश (एसआईडीएस) परिषद के विचार विमर्श में विकासशील देशों की तरह विशिष्ट परिप्रेक्ष्य में अपना योगदान नहीं दे पाते.
सुरक्षा परिषद के सत्र ‘शांति और सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहे एसआईडीएस’ में हिस्सा लेते हुए उन्होंने कहा कि इसके स्थान पर छोटे द्वीपीय देशों ने उनकी खास चिंताओं के हल के लिए महासभा द्वारा मुहैया कराए गए सार्वभौम मंच में असरदार तरीके से भागीदारी की है.
उन्होंने कहा, ‘‘लंबे समय तक यह स्थिति कायम नहीं रहेगी अगर खासकर, परिषद 2015 पश्चात विकास एजेंडा के सफल क्रियान्वयन के लिए स्थिर और मददगार अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक हालात सुनिश्चित करता है.’’
मुखर्जी ने कहा, ‘‘इसलिए हम आपसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ढांचे में जरूरी और जल्द सुधार के लिए, दोनों श्रेणियों में सदस्यता के विस्तार के लिए संयुक्त राष्ट्र के देशों से इसका अनुमोदन करने का आह्वान करते हैं जिससे कि विकासशील देशों की आवाजें सुनी जाएं और परिषद के कक्ष में नियमित कार्रवाई हो.’’
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