पश्चिम एशिया में शांति प्रयासों में भारत, चीन की भागीदारी चाहते हैं विशेषज्ञ

Last Updated 04 Jul 2015 03:29:40 PM IST

इजरायल-फलस्तीन संघर्ष के लगातार जारी होने के साथ विशेषज्ञों ने पश्चिम एशिया में मध्यस्थता प्रयासों को बढ़ावा देने और अमेरिका के प्रभुत्व को खत्म करने के लिए भारत और चीन की भागीदारी की जरूरत की तरफ संयुक्त राष्ट्र का ध्यान दिलाया है.


संयुक्त राष्ट्र (फाइल)

 
गत दो जुलाई को मॉस्को में ‘दो-राष्ट्र के हल हासिल करने की दिशा में अंतरराष्ट्रीय प्रयास’ विषय पर आयोजित एक बैठक में विशेषज्ञों ने ‘मिडिल ईस्ट क्वार्टेट’ के विस्तार, अरब शांति पहल के कार्यान्वयन एवं इजरायल में इसे लेकर व्यापक जागरूकता और इजरायल-फलस्तीन विवाद के हल के लिए एक निश्चित समयावधि तय करने से जुड़ा सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव लाने की मांग की.
   
मिडिल ईस्ट क्वार्टेट इजरायल-फलस्तीन विवाद में शांति प्रक्रिया की मध्यस्थता के हल के लिए 2002 में गठित चार देशों या संघों का समूह है जिसमें अमेरिका, रूस, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ शामिल हैं.
   
रूस के एक थिंक टैंक ‘सेंटर फोर यूरेशिया स्टडीज’ की प्रमुख शोधकर्ता गैलिना प्रोजोरोवा ने खासतौर पर चरमपंथी समूहों से निपटने के लिए यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सम्मिलित प्रयास तेज करना और क्वार्टेट का विस्तार करना जरूरी है क्योंकि क्वार्टेट वर्तमान वास्तविकताओं से निपटने में अपर्याप्त है.
   
गैलिना ने कहा कि अब तक प्रभावहीन होने की वजह से क्वार्टेट की कड़ी आलोचना की गयी है.
   
संयुक्त राष्ट्र द्वारा उपलब्ध करायी गयी बैठक से जुड़ी सूचना के अनुसार उन्होंने कहा, ‘‘पश्चिम एशिया में अमेरिका के प्रभुत्व के अंत की जरूरत पर जोर देते हुए चीन और भारत को (मध्यस्थता प्रक्रिया में) शामिल करने के लिए प्रस्ताव भी आगे किया गया.’’
   
गैलिना ने कहा कि शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने, जमाव गतिविधि से निपटने और इजरायल की नाकेबंदी को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय वार्ताकारों को निश्चित तौर पर वार्ता के लिए नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय माध्यमों का पूरा ‘जखीरा’ काम पर लगाना चाहिए.
   
सफल राजनीतिक प्रक्रिया के लिए जरूरी दशाओं को बढ़ावा देने के तरीकों की तलाश और दो राष्ट्र संबंधी समाधान हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की समीक्षा के लिए ‘कमिटी ऑन दि एक्सरसाइज ऑफ दि इनएलियनेबल राइट्स ऑफ दि पैलिस्टीनियन पीपल’ ने यह बैठक बुलायी थी.
   
भारत शुक्रवार को पहली बार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संस्था में फलस्तीन पर लाए गए प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहा. इस प्रस्ताव में पिछले साल के गाजा संघर्ष में शामिल पक्षों द्वारा जवाबदेही की पैरवी की गई है.



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