जापानी अनुसंधानकर्ताओं ने खोजा 30 मिनट में इबोला का पता लगाने का तरीका
जापानी अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने महज 30 मिनट के भीतर इबोला विषाणु का पता लगाने का नया तरीका खोज लिया है.
इबोला वायरस |
इस प्रौद्योगिकी की मदद से डॉक्टर बहुत जल्द संक्रमण का पता लगा सकेंगे.
नागासाकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जिरो यासुदा और उनकी टीम का कहना है कि उनकी जांच प्रकिया पश्चिम अफ्रीका में इस्तेमाल किए जा रहे परीक्षण के मुकाबले काफी सस्ती भी है. पश्चिम अफ्रीका में इबोला अभी तक 1,500 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है.
यासुदा ने टेलीफोन पर बताया, ‘‘नयी प्रकिया मौजूदा परीक्षण के मुकाबले सस्ती है और इसका उपयोग उन देशों में भी हो सकता है जहां महंगे उपकरण उपलब्ध नहीं हैं.’’
प्रोफेसर में कहा, ‘‘हमें अभी तक इसके संबंध में कोई प्रश्न या अनुरोध नहीं मिला है, लेकिन हम इसे उपयोग हेतु देने को तैयार हैं, यह काम के लिए तैयार है.’’
भारत में भी आया इबोला
गौरतलब है कि पश्चिमी अफ्रीकी देशों मे आतंक मचाने वाले इबोला वायरस ने देश की राजधानी दिल्ली मे दस्तक दे दी है.
अफ्रीकी देशो से आए 181 यात्रियों में से छह यात्रियों को वायरस के लक्षण पाए जाने के बाद दिल्ली हवाई अड्डे के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती करवाया गया है. यह जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी.
मंत्रालय ने बताया कि 816 यात्रियों में इबोला वायरस होने का संदेह है जिनपर नजर रखी जा रही है. सभी राज्यों को अफ्रीकी देशों से आने वाले यात्रियों के स्वास्थ्य पर नजर रखने के लिए कहा गया है.
वहीं, पश्चिम बंगाल के रायगंज में एक युवक को तेज बुखार के चलते अस्पताल मं भर्ती करवाया गया है. अस्पताल ने युवक की रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भेज दी है.
मामला बिहार के गोपालगंज जिले का है, जहां एक इबोला संदिग्ध पाया गया है.
अफ्रीकी देश लाइबेरिया से 27 अगस्त को वापस आए विरेंद्र सिंह में इबोला वायरस जैसे लक्षण पाए गए हैं.
गौरतलब है कि लाइबेरिया से ही यह वायरस पूरे विश्व में फैला है. जिले के लोमी चोर गांव के रहने वाले सिंह में लक्षण पाए जाने के बाद पूरे क्षेत्र में खौफ पैदा हो गया है. सिंह की मेडिकल रिपोर्ट में लक्षण पाए जाने के बाद उन्हें अस्पताल बुला लिया गया है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इबोला एक क़िस्म की वायरल बीमारी है. इसके लक्षण हैं अचानक बुख़ार, कमज़ोरी, मांसपेशियों में दर्द और गले में ख़राश.
ये लक्षण बीमारी की शुरुआत भर होते हैं. इसका अगला चरण है उल्टी होना, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव.
मनुष्यों में इसका संक्रमण संक्रमित जानवरों, जैसे, चिंपैंजी, चमगादड़ और हिरण आदि के सीधे संपर्क में आने से होता है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़, उष्णकटिबंधीय बरसाती जंगलों वाले मध्य और पश्चिम अफ़्रीका के दूरदराज़ गांवों में यह बीमारी फैली. पूर्वी अफ़्रीका की ओर कांगो, युगांडा और सूडान में भी इसका प्रसार हो रहा है.
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