एमनेस्टी इंटरनेशनल ने किन्नरों पर फैसले का स्वागत किया
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि किन्नरों के मानवाधिकारों को मान्यता दिए जाने से लाखों लोगों के जीवन में सुधार होगा.
एमनेस्टी इंटरनेशनल (फाइल) |
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यक्रम निदेशक शशिकुमार वेलाथ ने कहा कि इस फैसले में वर्षों से पीड़ित रहे लोगों के जीवन में पर्याप्त सुधार लाने की क्षमता है.
उच्चतम न्यायालय की दो जजों की पीठ ने मंगलवार को यह फैसला दिया था कि लिंग के आधार पर भेदभाव संविधान में दिए गए समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता, स्वायत्तता और सम्मान के अधिकारों का उल्लंघन है.
अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिए कि वे किन्नर की अपनी पहचान को मान्यता दें, फिर वे चाहे खुद को पुरूष मानते हों, महिला मानते हों या कोई तीसरा लिंग. अदालत ने सरकारों को आदेश दिए कि वे इनके लिए सकारात्मक कदम उठाएं और सामाजिक कल्याण की नीतियां बनाएं.
वेलाथ ने कहा कि यह संविधान में वर्णित समावेश और समानता के मूल्यों को मजबूत बनाता है लेकिन जब तक भारतीय दंड संहिता की धारा 377 रहती है, तब तक यौन केंद्रित और लैंगिक पहचान के आधार पर भेदभाव और हिंसा का खतरा बना रहेगा.
उन्होंने कहा कि भारत में चुनाव चल रहे हैं. मंगलवार को आए इस फैसले के बाद नई सरकार को इस कानून को निरस्त करने के लिए प्रोत्साहन मिलना चाहिए.
दिसंबर 2013 में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बरकरार रखते हुए सहमति से व्यस्कों के बीच बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा था.
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