भारत यात्रा के दौरान आर्थिक सहायता के मुद्दे को उठाएंगे प्रचंड
नेपाल के माओवादी नेता प्रचंड ने अपनी भारत यात्रा से ऐन पहले कठोर रूख का संकेत दिया है.
भारत यात्रा के दौरान आर्थिक सहायता के मुद्दे को उठाएंगे प्रचंड (फाइल फोटो) |
उन्होंने कहा है कि भारत की सुरक्षा चिंता पर तब तक ध्यान नहीं दिया जाएगा जब तक नेपाल को आर्थिक सहायता देने की उनकी मांग पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलती.
59 वर्षीय प्रचंड शनिवार की शाम भारत के चार दिनी दौरे पर रवाना हो रहे हैं. उनके साथ चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भी होगा. वह अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात करेंगे.
यूनीफाइड कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी (यूसीपीएन-एम) के अध्यक्ष के हवाले से एक दैनिक अखबार ने लिखा है, ‘‘मैं अपनी भारत यात्रा के दौरान नेपाल के आर्थिक विकास का मुद्दा उठाउंगा. अगर भारत सहयोग नहीं करता तो हम भी उनकी सुरक्षा चिंताओं पर ध्यान नहीं दे पाएंगे.’’
प्रचंड चीन की हफ्ते भर लंबी यात्रा से लौटने के तत्काल बाद भारत यात्रा पर रवाना हो रहे हैं. उन्होंने चीन में शीर्ष स्तर के अधिकारियों और नेताओं से मुलाकात की. उन्होंने चीन के नवनियुक्त प्रधानमंत्री शी चिनफिंग से भी मुलाकात की.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक मथावर सिंह बसनेत के मुताबिक, ‘‘प्रचंड जैसे वरिष्ठ नेता को एशिया की उभरती महाशक्ति - भारत की सुरक्षा चिंता सरीखे संवेदनशील मामलों से निपटते समय राजनीति करना अपरिपक्वता झलकाता है.’’
‘पुनर्जागरण वीकली’ के संपादक बसनेत ने कहा, ‘‘अगर माओवादी नेता अपने निहित स्वार्थ के लिए नेपाल के पड़ोसी मित्र देशों के साथ सस्ती राजनीति करते हैं तो उनकी पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना होगा.’’
यूसीपीएन-एम की स्थाई समिति के सदस्य दीनानाथ शर्मा ने कहा कि नयी दिल्ली में प्रचंड की उच्चस्तरीय वार्ताओं के दौरान आर्थिक एजेंडा शीर्ष पर रहेगा लेकिन माओवादी नेता नेपाल में नये संविधान की रचना के लिए संविधान सभा के चुनाव संपन्न कराने में भी भारत की मदद मांगेंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘हमें संविधान सभा के चुनाव संपन्न कराने में भारत और चीन दोनों का सहयोग चाहिए. यूसीपीएन-एम माओवादी बहुदलीय प्रतिस्पर्धात्मक लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्ध है.’’
नेपाल में सेना प्रमुख रकमंगद कटवाल को बर्खास्त करने के मुद्दे पर राष्ट्रपति रामबरन यादव से विवाद के चलते सत्ता से हटने के बाद प्रचंड ने भारत विरोधी बयानबाजी शुरू कर दी थी.
शर्मा के अनुसार, ‘‘प्रचंड अपने दक्षिणी पड़ोसी देश के साथ पुरानी गलतफहमियों को दूर करने का भी प्रयास करेंगे.’’
यूसीपीएन-एम ने हालांकि कुछ साल पहले भारत के खिलाफ अपने रख को नरम किया था जिस समय बाबूराम भट्टराई मधेशी दलों के समर्थन से सत्ता में पहुंचे थे.
नेपाल में मई, 2012 में भट्टराई ने संविधान की रचना किये बिना संविधान सभा को भंग कर दिया था जिसके बाद देश राजनीतिक और संवैधानिक संकट में घिर गया था.
राजनीतिक संकट और गहरा गया, जब भट्टराई अपने वादे के बावजूद पिछले साल नवंबर में नये सिरे से चुनाव नहीं करा सके.
फिलहाल नेपाल के बड़े दलों ने चीफ जस्टिस खिल राज रेगमी के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनाई है और जल्दी से जल्दी नये सिरे से चुनाव कराने के लिए तैयार हो गये हैं.
राजनीतिक दलों ने जून में चुनाव कराने पर रजामंदी जताई थी लेकिन अब आवश्यक नियम नहीं होने और राजनीतिक सहमति की कमी के चलते नवंबर से पहले ऐसा संभव नहीं लगता.
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