आकर्षण

Last Updated 07 Dec 2021 12:09:32 AM IST

केवल एक प्रेमपूर्ण व्यक्ति-जो पहले से ही प्रेमपूर्ण है-सही साथी ढूंढ सकता है।


आचार्य रजनीश ओशो

मेरे देखे यदि तुम प्रसन्न हो तो तुम कोई ऐसा व्यक्ति खोज लोगे जो प्रसन्न है। दुखी लोग दुखी लोगों के प्रति आकार्षित होते हैं। और यह शुभ है, यह स्वाभाविक है। यह शुभ है कि  अप्रसन्न लोग प्रसन्न लोगों के प्रति आकर्षित नहीं होते। अन्यथा वे उनकी प्रसन्न्ता का नाश कर देंगे। यह पूर्णतया ठीक है। समान समान को आकर्षित करता है। बुद्धिमान लोग बुद्धिमान लोगों के प्रति आकर्षित होते हैं, और मूढ़ लोग मूढ़ों के प्रति।

तुम अपने समान स्तर के लोगों से ही मिलते हो। तो स्मरण रखने योग्य प्रथम बात तो यह है कि: संबंध निश्चित ही कटु होंगे यदि वे अप्रसन्नता में पल्लवित होते हैं। सर्वप्रथम प्रसन्न हो जाओ, आंदित हो जाओ, उत्सवपूर्ण हो जाओ, और तब तुम देख पाओगे दूसरे लोगों को जो आनंदित हैं। फिर दो नृत्य करती आत्माओं का मिलन होगा तथा एक महान नृत्य होगा पैदा होगा। अकेलेपन से ऊब कर संबंधों की मांग मत करो। तब तुम गलत दिशा की ओर अग्रसर हो। तब दूसरे को तुम एक माध्यम की तरह इस्तेमाल कर रहे हो, और दूसरा भी तुम्हें माध्यम बना रह है।

यदि तुम अकेले रह कर भी प्रसन्न हो सकते हो तो तुमने प्रसन्न होने का राज सीख लिया है। अब तुम किसी के साथ भी प्रसन्न रह सकते हो। यदि तुम प्रसन्न हो तो तुम्हारे पास कुछ बांटने को है, देने को है। और जब तुम देते हो तो तुम्हें मिलता है, अन्यथा नहीं। तब किसी से प्रेम करने की जरूरत पैदा होती है। एक बच्चा पैदा होता है। स्वभाविकत: बच्चा मां को प्रेम नहीं कर सकता, उसे नहीं मालूम कि प्रेम क्या होता है, न ही उसे पता है कि कौन मां है कौन पिता। वह पूर्णतया असहाय है।

उसका अभी स्वयं के साथ एकीकरण होना है। अभी उसका स्वयं से एकात्म नहीं हुआ, अभी वह स्वयं में स्थित नहीं हुआ। वह बस एक संभावना है। मां को उसे प्रेम करना है, बाप को उसे प्रेम करना है, परिवार को उस पर प्रेम की बौछार करनी है। उसे एक ही बात समझ आती है कि सबको उसे प्रेम करना है। वह यह कभी सीखता ही नहीं कि उसे भी किसी को प्रेम करना है। अब वह बड़ा होगा, और यदि वह इस भाव से ही जुड़ा रहा कि सबने उसे ही प्रेम करना है तो वह पूरा जीवन दु:ख से पीड़ित रहेगा। उसकी देह तो बड़ी हो गई, लेकिन उसका मन अप्रौढ़ रह गया है। एक प्रौढ़ व्यक्ति वह है, जिसे अपनी दूसरी जरूरत समझ में आ जाती है कि अब उसे दूसरे को प्रेम करना है।



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