तकलीफ
पीड़ा हमारी स्वयं की रची हुई है। तो क्या यह संभव है कि दर्द हो पर पीड़ा न हो?
जग्गी वासुदेव |
मेरे अपने ही जीवन में, बहुत साल पहले, जब मेरा सारा समय मोटरसाइकिल पर गुजरता था और मैं सारे देश में घूमता रहता था, तो एक बार एक ऐसी अनूठी दुर्घटना हो गई। एक वाहन पीछे हटा और मेरा पैर एक पार्क की हुई मोटरसाइकिल के पायदान तले दब गया। यद्यपि पायदान धारदार नहीं होता पर उसने मेरी मांसपेशी को हड्डी तक काट कर रख दिया। उस रोज मैं किसी दूर-दराज की एक छोटी-सी जगह पर था। मैं वहां के स्थानीय चिकित्सालय में गया जहां बेहोशी की दवा देने की सुविधा नहीं थी। छोटे स्थानों के अस्पतालों में ऐसी समस्या प्राय: देखने को मिलती ही है।
डॉक्टर ने मेरे घाव को देखा और कहा, ‘इसे ठीक करने का मेरे पास कोई रास्ता नहीं है। तुमको तुरंत ही किसी बड़े अस्पताल में जाना चाहिए क्योंकि इसे ठीक करने के लिए तुमको बेहोशी की दवा की जरूरत होगी’। अस्पताल दूर था और मुझे जिस तरफ जाना था, वह उसकी विपरीत दिशा में था। मेरी समस्या यह है कि मेरे सारे जीवन भर मैंने कभी पलटना नहीं जाना। कुछ भी हो, मैं हमेशा मंजिल की ओर ही जाता हूं। तो मैंने कहा, ‘नहीं, मैं उस तरफ नहीं जाऊंगा, मुझे दूसरी तरफ जाना है’।
डॉक्टर ने कहा, ‘इस स्थिति में तुम कहीं भी नहीं जा सकते’। मैं जब उनके साथ तर्क-वितर्क कर रहा था तो मेरे पैर से बहते खून से उस चिकित्सालय में तालाब बन रहा था। और वे मेरी बात मान गए, जो बात तर्क से नहीं बन रही थी, वो मेरे बहते खून के कारण बन गई। उन्होंने बिना बेहोशी की दवा के मेरा इलाज शुरू किया। घाव इतना गहरा था कि तीन अलग-अलग स्तरों पर, मेरी मांसपेशी को एक करने के लिए, कुल 54 टांकें लगाने पड़े।
जब यह सब चल रहा था तब मैं डॉक्टर के साथ बातचीत कर रहा था। वे पसीने से चूर थे और हांफ रहे थे। जब सब पूरा हो गया तो उन्होंने पूछा, ‘क्या तुम्हारे पैर में कोई दर्द नहीं हो रहा? तुम मुझसे ऐसे ही बात कर रहे हो’! वास्तव में मुझे भयंकर दर्द हो रहा था पर मैं उसे पीड़ा नहीं बना रहा था। पीड़ा हमेशा अपनी बनाई हुई होती है, दर्द सिर्फ शरीर का होता है। दर्द एक प्राकृतिक घटना है। अगर दर्द न हो तो आप को अपने पैर कट जाने का भी पता नहीं चलेगा।
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