मन-मस्तिष्क

Last Updated 10 Dec 2019 06:50:54 AM IST

लोग एक-दूसरे से इस तरह व्यवहार क्यों करते हैं? क्या यह सिर्फ आदतवश है या कि मनुष्य में ऐसा कुछ है जो उसे भटकने पर बाध्य करता है?


आचार्य रजनीश ओशो

यह दोनों है। एक तो, मनुष्य में ही कुछ ऐसा है जो उसे भटकाता है। दूसरे, ऐसे लोग हैं जो मनुष्य को भटकाना चाहते हैं। दोनों मिलकर एक झूठा, नकली आदमी तैयार करते हैं। उसका हृदय प्रेम के लिए तरसता है लेकिन उसका संस्कारित मन उसे प्रेम से वंचित रखता है। यह समस्या है। प्रत्येक समाज फिक्र लेता है कि मन अधिक से अधिक मजबूत होता रहे ताकि मन और हृदय में कोई संघर्ष हो तो मन जीते।

उन्होंने तुम्हारे मन को इस तरह प्रशिक्षित किया है कि तुम उनके उद्देश्य को सफल करो। पच्चीस साल की शिक्षा के बाद तुम उसे इतना मजबूत करते हो कि हृदय को भूल ही जाते हो। तो तुम हमेशा दुखी रहोगे। सुख यह है कि केवल तुम्हारा हृदय ही तुम्हें खुशी दे सकता है, आनंद दे सकता है, तुमसे नृत्य करा सकता है। मस्तिष्क गणित तो हल कर सकता है लेकिन गीत नहीं गा सकता। ये मस्तिष्क की क्षमताएं ही नहीं हैं। तुम्हारा स्वभाव जो तुम्हारा हृदय है और समाज जो तुम्हारे दिमाग में है, इनके बीच टूट जाते हो। तुम्हारे पास एक मन है जो तुम खाली ले आते हो।

यह तुम्हें इसलिए खाली दिया जाता है ताकि यह तुम्हारे हृदय का, तुम्हारी अभीप्साओं का सेवक बने। लेकिन विश्व भर में निहित स्वाथरे ने इसे सुनहरे अवसर की भांति मन को हृदय के खिलाफ इस्तेमाल किया है। तो तुम दुखी बने रहते हो। वे लोग तुम्हारा जैसी मर्जी उपयोग कर सकते हैं। हर कोई प्रेम करना चाहता है। हर कोई चाहता है कि कोई उससे प्रेम करे। लेकिन मन ऐसा अवरोध है कि न तो वह तुम्हें प्रेम करने देता है, और न वह किसी को तुमसे प्रेम करने देता है। दोनों मामलों में मन बीच में आता है।

संयोगवश तुम किसी व्यक्ति से मिलते भी हो जिससे तुम्हें प्रेम हो जाए और जो तुमसे प्रेम करे, तो भी तुम्हारे मन नहीं मिलेंगे। उन्हें अलग-अलग प्रणालियों ने प्रशिक्षित किया है, अलग धर्मो ने, अलग समाजों ने। दुर्भाग्यवश समाज, लोग जिनके साथ तुम जीते आ रहे हो, जो हमें इस दुनिया में ले आए हैं, उन्होंने इस बारे में कुछ सोचा नहीं है। वे जानवरों की तरह आदमियों को पैदा करते रहे हैं, उनसे भी बदतर क्योंकि जानवर कम-से-कम संस्कारित तो नहीं हैं। यह संस्कार करने की प्रक्रिया पूरी तरह से बदलनी चाहिए। मन को हृदय का सेवक बनने के लिए तैयार करना जरूरी है।



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