परमानंद
आज तो भ्रमित करने वाले नशे की दवाएं भी ब्लिस (परमानंद) के नाम से बेची जाती हैं।
जग्गी वासुदेव |
अगर आप पश्चिम में ‘ब्लिस’ कहेंगे तो उन्हें लगेगा कि आप नशे की किसी खास गोली की बात कर रहे हैं। सच्चा परमानंद और झूठा परमानंद जैसा कुछ नहीं होता। जब आप सत्य में होते हैं तभी परमानंद में होते हैं। जब आप वास्तव में सत्य से जुड़ेंगे तब ही परमानंद में होंगे। परमानंद की अनुभूति होना अथवा न होना, ये आप के लिए एकदम सटीक परीक्षण की तरह है जो आप को बताता है कि आप सत्य में हैं अथवा नहीं हैं। ये प्रश्न शायद इस खास दिमागी सोच में से आ रहा है, ‘अगर मैं सूर्यास्त देख रहा हूं और एकदम आनंद में हूं तो क्या यह सच्चा परमानंद है, मैं प्रार्थना कर रहा हूं और आनंद में हूं तो क्या यह सच्चा परमानंद है? या मैं अगर ध्यान कर रहा हूं और आनंदमय हूं तो क्या यह सच्चा परमानंद है’? अधिकतर लोग सुख को परमानंद समझ लेते हैं। आप कभी भी सुख को हमेशा के लिए टिका कर नहीं रख सकते। लेकिन परमानंद की अवस्था का अर्थ है ‘वो अवस्था जो किसी पर भी आधारित नहीं है’।
सुख हमेशा किसी व्यक्ति या वस्तु या परिस्थिति पर आधारित होता है। परमानंद की अवस्था किसी पर भी आधारित नहीं होती। आप के स्वभाव के कारण होती है। एक बार आप इसके साथ जुड़ जाते हैं तो आप इसमें ही होते हैं, बात बस यही है। परमानंद की अवस्था कोई ऐसी नहीं है जो आप कहीं बाहर से कमा कर लाएं। ये वो है जो आप अपने ही अंदर गहराई में उतर कर पाते हैं। यह कुआं खोदने जैसा है। आप मुंह खोल कर प्रतीक्षा करें कि जब बरसात होगी तब उसकी बूंदें आपके मुंह में गिरेंगी तो उनमें से कुछ बूंदें आपके मुंह में गिर भी सकती हैं।
लेकिन अपनी प्यास बुझाने का यह तरीका हताशाजनक है। और बारिश हमेशा नहीं होती। दो-एक घंटे होगी और फिर बंद हो जाएगी। यही कारण है कि आप अपना कुआं खोदते हैं जिससे साल भर पानी मिलता रहे। आप जिसे सच्चा परमानंद कह रहे हैं, वो बस यही है। आपने अपने अंदर अपना कुआं खोद लिया है, और वो पानी प्राप्त कर लिया है जो आप के लिये हमेशा टिका रहेगा। यह वो पानी नहीं है जो आप को बरसात के समय मुंह खोल कर, उसके नीचे खड़े होने से मिलेगा। नहीं, यह वो पानी है जो हमेशा ही आप के पास है। यही परमानंद है।
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