वर्तमान
योग की सारी प्रक्रिया मन की सीमाओं से परे जाने के लिए है। जब तक आप मन के नियंत्रण में है, तब तक आप पुराने प्रभावों से चलते हैं क्योंकि मन बीते हुए समय की यादों का ढेर है।
![]() जग्गी वासुदेव |
अगर आप जीवन को सिर्फ मन के माध्यम से देखते हैं तो आप अपने भविष्य को भी भूतकाल की तरह बना लेंगे, न ज्यादा न कम। क्या यह दुनिया इस बात का पर्याप्त सबूत नहीं है?
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे पास विज्ञान, तकनीक और दूसरे कई तरह के कितने अवसर आते हैं, पर क्या हम बार-बार उन्हीं ऐतिहासिक भूलों को नहीं दोहराते? अगर आप अपने जीवन को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि वही चीजें बार-बार हो रही हैं क्योंकि जब तक आप मन के प्रिज्म के माध्यम से काम कर रहे हैं तब तक आप उसी पुरानी जानकारी के साथ काम करते रहेंगे। बीता हुआ समय आप के मन में ही रहता है। सिर्फ इसलिए कि आप का मन सक्रिय है, बीता हुआ कल बना रहता है।
मान लीजिये, आप का मन इसी पल काम करना बंद कर दे तो क्या बीता हुआ समय यहां रहेगा? वास्तव में यहां कोई भूतकाल नहीं है, सिर्फ वर्तमान ही है। असलियत सिर्फ वर्तमान ही है, मगर हमारे मन के माध्यम से भूतकाल बना रहता है, दूसरे शब्दों में, मन ही कर्म है। अगर आप मन के परे चले जाएं तो आप सारे कार्मिंक बंधनों के पार चले जाएंगे।
अगर आप कार्मिंक बंधनों को एक-एक कर के तोड़ना चाहें तो इसमें शायद लाखों साल लग जाएं और इसे तोड़ने की प्रक्रिया में आप कर्मो का नया भंडार भी बनाते जा रहे हैं। आप के पुराने कार्मिंक बंधनों का जत्था कोई समस्या नहीं है। आप को यह सीखना चाहिए कि नया भंडार कैसे तैयार न हो! यही मुख्य बात है। पुराना भंडार अपने आप समाप्त हो जाएगा, उसके लिए कोई बड़ी चीजें करने की जरूरत नहीं है। पर बुनियादी बात ये है कि आप नए भंडार बनाना बंद करना सीख लें। फिर पुराने भंडार को छोड़ देना बहुत सरल होगा।
अगर आप मन के परे चले जाएं तो आप पूरी तरह से कर्मिंक बंधनों के भी परे चले जाएंगे। आप को कर्मो को सुलझाने में असल में कोई प्रयास नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि जब आप अपने कर्मो के साथ खेल रहे हैं तो आप ऐसी चीज के साथ खेल रहे हैं जिसका कोई अस्तित्व नहीं है। बीते हुए समय का कोई अस्तित्व नहीं है पर आप इस अस्तित्वहीन आयाम के साथ ऐसे जुड़े रहते हैं, जैसे कि वही वास्तविकता हो।
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